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भामाशाह
जब तक आपके क्षत ठीक न हो जायें तब तक आप मेरी परिचर्या स्वीकार करें । स्वस्थ हो जाने पर अपने देश चले जायें।
ताराचन्द्र-इस स्थान में आपकी सहायता वरदान स्वरूप प्रतीत होती है। पर मेरा अश्व कहां है ?
सांईदास-तुम्हारा स्वामिभक्त अश्व यह खड़ा है, इसी की पीठ पर तुम्हें बैठाकर दुर्ग में ले चलूंगा।
ताराचंद्र-जब आप मुझपर इतना अनुग्रह कर रहे हैं, तब आपके अनुरोध को सहर्ष स्वीकार करना मेरा भी कर्तव्य है।
साईदास... ( अश्व को ताराचंद्र के सामने खड़ा कर ) उठने का कुछ. प्रयास करो, जिससे मैं तुम्हें अश्व पर आरूढ़ कर दूं।
( साँईदोस की सहायता से ताराचंद्र का अश्व पर आरोहण, अश्व की रश्मि पकड़ सांईदास का दुर्ग की ओर प्रस्थान )
पटाक्षेप