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भामाशाह भामाशाह-आपका विश्वास सत्य है। मालव-नरेश से २५ लक्ष रुपये एवं २० सहस्र स्वर्ण-मुद्राएं भेंटस्वरूप प्राप्त हुई हैं, जो आपके चरणों में मेवाड़-उद्धार के लिये अर्पित हैं। ( राणा के समक्ष स्वर्णथालस्थापन )
प्रतापसिंह-साधुवाद ! वास्तवमें मुझे इस समय अर्थ की अत्यन्त आवश्यकता थी, कारण आपके प्रवास-काल में भी यवनों के आक्रमण अविराम होते रहे हैं। जिसमें मेरी समस्त जन-धन-शक्ति नष्ट हो चुकी है। आपसे प्राप्त यह सहायता अत्यन्त सामयिक रही, अब मैं कुछ दिनों तक यवनों से संग्राम कर सकूँगा।
ताराचन्द्र-स्वामिन् ! केवल जन-धन का ही विनाश हुआ है; इसके अतिरिक्त अन्य कोई अमांगलिक घटना तो नहीं घटी ?
प्रताप सिंह-नहीं, शेष कुशल है। परिवार की सुरक्षा में भील बन्धु सावधान हैं। मुझे कभी उनकी देख भाल करनेका समय नहीं मिलता, पर श्री एकलिंग की कृपा से सभी अक्षत हैं। __ मामशााह-इसे सौभाग्य ही समझना चाहिये। ( विषय परिवर्तन करते हुए ) शासन-संचालन में किसी प्रकारकी अव्यवस्था तो उत्पन्न नहीं हुई ? ___प्रताप सिंह-विशेष कुछ नहीं, आपके स्थान पर रामा सहाणी कार्य करते रहे हैं। अब आप अपने पद को पुनः स्वीकार करें । ( रामा सहाणी से राज्य मुद्रा ले भामाशाइ को अर्पण और भामाशाहका नत शिर हो मुद्रा-ग्रहण )
भामाशाह-रामा सहाणी से ) आप को मेरे अभाव में इतने दिनों
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