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भामाशाह
प्रतापसिंह-शोचनीय है ही, कारण निरन्तर होने वाले आक्रमणों में मेरे सभी वीर युद्ध की भेंट चढ़ चुके हैं । वेतनभोगी योद्धा रखने के लिये धन का अभाव है, ऐसी दशा में उन्हें कोई सहायता भेजना भी अशक्य है । अपनी यह विवशता ही चिन्ता की जननी बन रही है।
रामा-चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं, भामाशाह और ताराचन्द्र दोनों बुद्धिमान तथा साहसी हैं । वे अपने कौशल से निरापद हो शीघ्र आ रहें होंगे।
प्रताप सिंह-भगवान एकलिंग करें आपकी वाणी सत्य निकले। ( द्वारपाल का प्रवेश )
द्वारपाल-प्रजापाल ! अमात्य वर भामाशाह और उनके भ्राता ताराचन्द्र मालवा से आ गये हैं और अब यहां पधार रहे हैं।
प्रताप सिंह-तुमने यह शुभ सम्वाद अवसर पर सुनाया, हम इसी सम्वाद की प्रतीक्षा कर रहे थे। ( रामा सहाणी से ) देखें भामाशाह को मालवा में क्या सफलता प्राप्त हुई है ?
( भामशाह और ताराचन्द्र का अभिवादन करते हुए प्रवेश )
प्रतापसिंह-आइये ! आइये !! हम अभी आपके ही विषय में चर्चा कर रहे थे । इस समय आप दोनों को सकुशल सामने देखकर मुझे आनन्द हो रहा है । कहिये, कुशल है न ?
भामाशाह-अन्नदाता ! आपके श्री-चरणों के प्रसाद से सर्व कुशलता है।
प्रताप सिंह -मुझे विश्वास है कि आप अपना कार्य सिद्ध कर ही मेवाड़ आये होंगे ?