SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भामाशाह तक मेरा कार्य करना पड़ा, इसके लिये मैं आपसे क्षमा चाहता हूं। __रामा०-क्षमा क्या! सूर्य के अभाव में दीपक प्रकाशदान करता ही है, पर सूर्य को दीप से क्षमा याचना की आवश्यकता नहीं होती। प्रतापसिंह-अब यह विवाद रहने दो,अपने खोये हुए दुर्गोको पुनः प्राप्त करने का प्रयत्न करो। भामाशाह-मेरे विचार से सर्वप्रथम देवीर के दुर्ग पर आक्रमण करना ठीक होगा। प्रतापसिंह-मेरा भी यही मत है, इस आक्रमण में मेरे साथ तुम्हें भी रहना पड़ेगा। भामाशाह-मैं स्वयं ऐसा ही चाहता था । ताराचन्द्र -- क्या मैं भी देवीर पर आक्रमण करते समय आपके ही साथ रहूं ? ___ प्रतापसिंह-नहीं, मेरे साथ भामाशाह पर्याप्त हैं। आप कुछ सैनिक लेकर मालवा की ओर जायें तथा यवन-सेना को इधर आने से रोकें। ___ ताराचन्द्र-जो आज्ञा । मैं शीघ्र मालवा की ओर प्रस्थान करूंगा। पटाक्षेप
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy