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भामाशाह के कर्णधार राणा को छोड़ कर इधर चले आना केवल मूर्खता ही नहीं, स्वामिद्रोह भी है। ___ मन्त्री-न्यायावतार ! ऐसी कल्पना न करें। भामाशाह का हृदय बुद्धिमत्ता और स्वामि-भक्ति दोनों का संगम है । वे कभी महाराणा को विपत्ति में छोड़कर नहीं आ सकते। निस्सन्देह उनकी इस यात्रा का कोई विशेष उद्देश्य होगा।
मालवेन्द्र-स्वामी को संकट में छोड़ कर चले आनेका उद्देश्य स्वार्थसाधन के सिवा और क्या होगा ? वे अवश्य ही महाराणा को निर्धन समझ कर किसी समृद्ध नरेश के यहां शरण लेने आये होंगे।
मंत्री-धर्मावतार ! ऐसी कुशंका न करें। कृतघ्नता भामाशाह को स्पर्श भी नहीं कर सकती। उनकी स्वामि-भक्ति की प्रशंसा सुनने का अवसर मुझे अनेक बार मिला है। मेवाड़के सिंहासनके प्रति उनकी स्वामिभक्ति आज की नहीं, यह तो पैतृक उत्तराधिकार है । इनके जनक भारमल्ल भी महाराणा उदयसिंह के मन्त्री रहे हैं और राणा प्रतापसिंह के राज्यारोहण के दिन से ही ये मेवाड़ के मंत्री-पद पर प्रतिष्ठित रहे । अतः इनसे विश्वासघात की आशंका धेनुके स्तनो से विषकी आशंका के समान निर्मूल है। ____ मालवेन्द्र-यदि आपको इनकी स्वामिभक्ति पर इतना विश्वास है तो ये अवश्य ही राणाके किसी कार्य से यहां आये होंगे। पर परराष्ट्र के मन्त्री से सतर्क रहना राजनीति है। अतः आप उनके इधर आगमन का उद्देश्य शीघ्र ज्ञात करिये, मुझे सन्देह है कि उनके आगमन का प्रयोजन हमारा अहित करना ही है।
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