SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भामाशाह सन्त-यदि ऐसा किया तो शीघ्र ही स्वपर कल्याण में समर्थ होओगे । श्री शांतिनाथ की कृपा से आपको राष्ट्र में शांति स्थापित करने की क्षमता मिले - यही मेरी कामना है । ( गमन ) पटाक्षेप स्थान - चावण्ड समय- प्रभात दृश्य २ ( महाराणा प्रतापसिंह और भामाशाह ) प्रतापसिंह—भामाशाह ! इस युद्ध में मेरा इतना विनाश हुआ है कि जिसकी कोई सीमा नहीं । मेरा प्राणरक्षक झाली सरदार मुझसे सदा के लिये बिदा हो गया । प्रिय अश्व चेतक भी मेरी रक्षा में सदा के लिये सो गया। ग्वालियर - नरेश राजा रामशाह और उनके पुत्र खण्डेराव भी स्वर्ग सिधार गये। इसके अतिरिक्त १४ सहस्र राजपूत भी रणचण्डी की भेंट चढ़ गये, पर इतनी आहुति भी जयश्री की प्रसन्नता के लिये पर्याप्त नहीं हुई । भामाशाह - इसी कारण उत्साह में शिथिलता आ चली थी, हृदयप्रदेश पर चिन्ता का शासन विस्तार पाता जा रहा था, पर उन संत के उपदेश से विदा होता हुवा साहस लौट आया है, चिन्ता की ज्वाला बुझ चली है । प्रतापसिंह- मुझे भी उनके उपदेश से एक अपूर्व बल मिला है, - पूर्ति के लिये क्या योजना बनायें ? यह विचारणीय है । पर अब प्रण ६७
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy