________________
भामाशाह
भामाशाह-मेवाड़-मुकुट ! इस समय युद्ध की विभीषिका से पोखरियों का जल सड़ गया है, अगणित शवों की दुर्गन्ध से वायुमण्डल विषैला हो गया है, यवन दलमें विभिन्न रोगोंका प्रकोप विस्तार पाता जा रहा है, नित्य कुछ न कुछ यवन सैनिक मृत्यु की भेंट चढ़ते जा रहे हैं, इन सब कारणों से वे अभी आक्रमण न करेंगें । अतः यही उपयुक्त समय है जब हम अपनी सेनाका नवीन संगठन कर सकते हैं ।
प्रतापसिंह-अवसर यही है, पर हमारे पास सेना संगठित करने के लिये न धन रह गया और न अन्य साधन ही। समस्त कोषोंका रजत और स्वर्ण युद्ध में व्यय हो चुका है, आपके साधन भी समाप्त हो चुके हैं। अतः धनाभाव से नवीन सेना एकत्रित करना असंभव
सा है और युद्धावशिष्ट सैनिक कितने क्षण युद्ध में ठहर सकते हैं ? ____ भामाशाह-हमारे सामने यही समस्या सबसे जटिल है। मेवाड़ की स्वाधीनता अक्षुण्ण रखने के लिये आप जो उपाय बतलायें उसे करने के लिये मैं तत्पर हूं।
प्रतापसिंह-उपाय धन-प्राप्ति के सिवा और कुछ नहीं, कहीं से भी पर्याप्त धन-राशि प्राप्त कीजिये और उससे वेतन-भोगी सैनिक रख कर यवनों के आक्रमण विफल किये जायें। तभी संतके समक्ष ली हमारी प्रतिज्ञा पूर्ण हो सकती है, अन्यथा नहीं।
भामाशाह-यह उपाय अवश्य सफलता का साधक हो सकता है, पर धन की प्राप्ति कहां से होगी ?
प्रतापसिंह-सैन्य-व्यय चलाने योग्य धन-राशि किसी नरेश से ही प्राप्त हो सकती है, अन्य से नहीं ।