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भामाशाह
मातृ भूमि ! युद्ध पर्व में तुम्हें प्रणाम । दो अशीष रख सकें स्वतन्त्रता अखण्ड । तव हृदय न छ सके यवन चमू-प्रचण्ड ।।
व्यर्थ हो अराति वर्ग की हरेक चाल । ___ एक शूर हो सहस्र शत्रु हेतु काल ।। जय मिले कि या मिले पुनीत स्वर्गधाम । मातृभूमि ! युद्धपर्व में तुम्हें प्रणाम ॥ आज तुम हमें करो यही सुवर प्रदान ।। अरि समक्ष हो न नत स्वदेश-स्वाभिमान ॥ शत्रुदल विशाल देख हम न हों अधीर ।
लक्ष्य पूर्ति हो अभीष्ट, प्रिय न हो शरीर ।। वीर मृत्यु पर समुद अमर करें स्वनाम ।
मातृभूमि ! युद्धपर्व में तुम्हें प्रणाम ॥ (युद्ध-वाद्य-ध्वनि) भामाशाइ-वीर सैनिकों ! अब युद्धारम्भ की सूचना हो रही है, आप सब यवन दल के प्रहार व्यर्थ करने के लिये कटिबद्ध हो जायें। हमारी अल्पतम असावधानी भी उसकी सफलता का प्रवेश-द्वार बन सकती है । अतः शरीर में प्राण रहते आप सब शत्रुसेना का संहार करते हुए महाराणा की रक्षा में तत्पर रहें।
[सैनिकों के कोषों से निकल खड़ गों की चमचमाहट, नेपथ्य में तोपों के . छुटने की गड़गड़ाहट, अश्वों के टापों की ध्वनि और युद्धारम्भ ]
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