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भामाशाह
गुप्तचर-यह इसलिये कि जिससे राजपूत सेना यवन दल को अल्पसंख्यक समझ कर समभूमि पर उतर आये, पश्चात् उनकी छिपी हुई टुकड़ियां हमपर मधुमक्खियों-सी चारों ओर से टूट पड़े।
प्रतापसिंह-(सक्रोध ) मानसिंह मेरे साथ यह चाल चल रहा है । पर मैं उसकी इस चाल को अपनी रण-कलाके भूचाल से चकनाचूर कर दूंगा । ( भामाशाह से ) भामाशाह ! कहिये, इस विकट स्थिति में किस नीति का आश्रय लेना चाहिये ? __ भामाशाह-मेरी सम्मति है कि हम पर्वत से नीचे न उतरें और यहीं से यवन दल पर प्रहार कर शत्रु की योजना निष्फल कर दें। __ प्रतापसिंह-ठीक है, मानसिंह समझता है कि उसकी चाल प्रतापसिंह पर चल जायेगी। पर उसे यह ज्ञात नहीं कि प्रतापसिंह कोई नवशिक्षित सैनिक नहीं, समर-शिक्षा-पारंगत योद्धा है। अब हम अभी समभूमि पर न उतरेंगे, यहीं से शत्रु पर शस्त्र प्रहार करेंगे। अतः अब अरावली के इसी शिखर पर केशरिया ध्वज फहरा दिया जाये।
( एक सैनिक द्वारा ध्वजात्तोलन ) प्रतापसिंह-रणमत्त वीरों! अभी रणारम्भ में कुछ क्षण का विलम्ब है । आओ, तब तक एक देश-प्रेम-मय गीत गाकर अपने हृदय में साहस भर लें तथा अपनी धमनियों के रक्त-प्रवाह की गति तीव्र कर लें।
(ध्वज के चारों ओर खड़े हो सर्व वीरों द्वारा गान )
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