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भामाशाह
दृश्य ५ स्थाथ-अरावली का एक शिखर समय-उषा
( विनाशोन्मुख अन्धकार प्राची-पट पर उषा-लालिमा, अपने प्रिय अश्व चेतक पर आरुढ़ वीर-वेश में महाराणा, उनके पाव में एक अश्व पर भामाशाह तथा 'महाराणा प्रताप की जय' 'मेवाड़ भूमि की जय' के नारे लगाते अन्य अश्वारोही सामन्त तथा धनुर्वाणधारी भील)
प्रताप सिंह-(नेपथ्य की ओर देखते हुये ) महामात्य ! इस ओर यवन-सैनिकों की संख्या साधारण दिख रही है । ये वास्तव में इतने ही हैं या कई श्रेणियों में विभक्त हो पृथक पृथक स्थानों में छिपे हैं ? ___भामाशाह-नरेन्द्र ! मैंने उनके दलके विषय में पूर्ण विवरण लाने के लिये अपने गुपचर प्रेषित किये थे, पर जाने क्यों वे अभी तक नहीं लौटे। कहीं शत्रुदल के बन्दी न बन गये हों ? (नेपथ्य की ओर देखकर) पर ऐसा सम्भव नहीं, यह एक गुप्तचर इसी ओर बढ़ा आ रहा है । देखें, क्या समाचार सुनाता है ?
(गुप्तचर का प्रवेश ) प्रताप सिंह-कहो! तुमने यवन-शिविर में जाकर क्या भेद लिया ? उनके सैनिक संख्या में कितने हैं तथा वे किन किन स्थानों पर डटे हैं ? सारा वृत्तान्त शीघ्र कहो।
गुप्तचर-प्रजापाल ! यवन सैनिकों की संख्या प्रायः एक लक्ष हैं, पर वे कई भागों में विभक्त हो यत्र तत्र छिपे हैं।
प्रतापसिंह-क्यों ? मानसिंह ने ऐसी योजना क्यों बनायो ?