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भामाशाह
मनोरमा-हृदयेश ! आप सहर्ष युद्ध के लिये प्रस्थान करें, मेरी ममता भुला कर्त्तव्य-पालन में सजग रहें । भगवान पाश्वनाथ आपके शरीर को कुशल रखें, मेवाड़ रक्षा कर आपका पौरुष सफल हो । विजयोल्लास से प्रदीप्त आपका मुखचन्द्र देखने का सौभाग्य मुझे शीघ्र मिले-यह मेरी मंगलकामना है। ___ भामाशाह-प्रिये ! तुम्हारी मनोकामना पूर्ण हो । अब उषा प्राची के गर्भ से जन्म लेने वाली है । अतः लाओ मेरे शस्त्र उठा दो, कारण महाराणा के पहुंचने के पूर्व ही हल्दीघाटी पर मेरा पहुंचना आवश्यक है।
( भामाशाहको गमनातुर देख मनोरमा द्वारा नीराजन, ललाट पर हल्दी और अक्षत से तिलकालेखन, सप्रेम चरण स्पर्शन और पतिके अंगों पर यथाविधि शस्त्रों का अलंकरण )
भामाशाह- ( सज्जित होकर ) प्रिये ! अब युद्धभूमि के लिये प्रस्थान करता हूं।
मनोरमा-नाथ ! जायें, सहर्ष जायें, मेरी शुभ कामनाओं के साथ जायें। आप जब विजयी होकर आयेंगे; जब मैं रत्नदीपकों से आपकी आरती उतारूंगी, चरणरज लेकर सुहाग-चनरी के अंचल में बांधूगी, आपके क्षतों की परिचर्या करूंगी,तब स्वाभिमान से मेरी छाती फूल उठेगी। हम दोनों जिनालय में जा भगवान से शान्तिकामना करेंगे। * भामाशाह-सौभाग्य से ऐसा ही हो। अब मैं कर्तव्य-पालन के लिये बिदा होता हूं । ( गमन)
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