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भामाशाह होने का भय हो। और हमारा अहिंसा धर्म भी सिंह बन कर निर्बलों को निगलने की आज्ञा तो नहीं देता पर भेड़ बने रहने की नीति का भी विरोधी है।
ताराचन्द्र-ठीक है; पर हमारे लिये अहिंसा धर्म परम धर्म बतलाया गया है । अतः शत्रुओंकी हिंसा करते हुये धर्मात्मा बने रहना-ये दो विरोधी तत्व मुझे भ्रांत कर रहे हैं।
भामाशाह-बन्धु ! तुम अभी अहिंसा की विशद व्याख्या नहीं समझे। इसी कारण ऐसी शंकाओं की तरंगों से मानस विक्षुब्ध हो रहा है। हम वीतरागी निर मुनि नहीं, रागद्वेष की श्रृंखला में निबद्ध गृहस्थ हैं। अतः धर्म तथा न्याय की रक्षाके लिये शस्त्रादि के प्रयोग का अधिकार हमें प्राप्त है।
ताराचन्द्र अधिकार ! क्या हमारे धर्माधिकारियों ने गृहस्थों के लिये ऐसा विधान बनाया है ? __ भामाशाह-अवश्य, देखो, जैनाचार्य सोमदेव ने कहा है कि जैन नरेश युद्ध-भूमिमें अवतीर्ण शस्त्रधारी तथा स्वराष्ट्र के कण्टक पर ही शस्त्र प्रहार करते हैं। दीन, निर्बल और सद्भावनाबाले व्यक्तियों पर नहीं । अतः मेवाड़-रक्षाके निमित्त यवन दलपर प्रहार करना धर्म विरुद्ध नहीं। कारण हमारे प्रहार का उद्देश्य विध्वंसात्मक नहीं, रक्षात्मक है।
ताराचन्द्र-भ्रातृवर! आपने अभी सोमदेवाचार्य का कथन *. यः शस्त्रवृत्तिः समरे रिपुः स्यात् , यः कण्टको वा निज मण्डलस्य । अस्त्राणि तत्रौव नृपाः क्षिपन्ति, नदीनकी नानशुभाशयेषु ॥ --यशस्तित्रक
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