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भामाशाह
दृश्य ३
स्थान-भामाशाह का भवन समय-पूर्वाह्न
( बरामदा, द्वारके दोनों ओर स्वस्तिक और ऊपर सुंदर लिपिमें 'अहिंसा परमो धर्मः', सामने की भित्ति पर जैन तीर्थकर भगवान शान्तिनाथ का एक कलापूर्ण चित्र, भामाशाह और ताराचन्द्र )
भामाशाह-सहोदर ! शीघ्र ही मेवाड़-मेदिनी रणचण्डी के ताण्डव नृत्य के लिये रंग-भूमि बनने वाली है, इसी आयोजन में सक्रिय सहयोग देने के लिये तुम्हें बुलाया गया है। इस वीर-रस-प्रधान नाटक का नायकत्व राणा करेंगे ही, पर हमें भी इसमें भाग लेने के लिये अपना कर्तव्य निश्चित करना है।
ताराचन्द्र-कर्त्तव्य क्या निश्चित करना है ? वह निश्चित-सा ही है । हम स्वाधीनता के पुजारी महाराणा का साथ देंगे । पर ...... ( सहसा मौन)
भामाशाह-पर क्या ? वाक्य का शेषांश कण्ठ में ही क्यों रह गया ? उसे मुख-द्वार से बाहर आने दो।
ताराचन्द्र-यही कि हम अहिंसा धर्म के अनुयायी हैं और इस महासमर में विशाल यवनवाहिनी को परिपक्व धान्य की भांति काटना होगा। तब क्या हम अहिंसा धर्म-प्राणप्रिय अहिंसा धर्म से च्युत न होंगे ?
भामाशाह-नहीं, यह धर्म-युद्ध है, अधर्म-युद्ध नहीं जो धर्मच्युत
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