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भामाशाह बतलाया, पर वे भी हमसे कुछ विशिष्ट ज्ञानी मनुष्य ही थे, सर्वज्ञ आप्त नहीं। इस कारण उनका कथन उतना प्रामाणिक नहीं माना जा सकता, जितना धर्म के प्रवर्तक तीर्थंकरों का। अतः आप बतायें कि ऐसा कोई उपदेश उन्होंने दिया है क्या ?
भामाशाह-उपदेश दिया ही नहीं, किंतु आचरण भी किया है। देखो, तुम्हारे समक्ष भित्ति पर जो चित्र अवलम्वित है, वह सोलहवें तीर्थंकर शान्तिनाथ का है। इन्होंने सम्राट-अवस्था में शस्त्र प्रयोग किया था। इनके विषय में स्वामी समन्तभद्रने लिखा है कि इन्होंने सम्राट के रूप में चक्र द्वारा शत्रुसमूह को जीतकर पुनः समाधिचक्र से दुर्जय मोह-बल को परास्त किया। इससे प्रमाणित होता है कि जन्म से मति, श्रुति और अवधिज्ञान के धारक अहिंसा धर्म के प्रवर्तकों ने भी गृहस्थ जीवन में धर्म और न्याय की रक्षा के लिये शस्त्र प्रयोग किया था। आशा है अब तुम्हें अहिंसा के सत्य स्वरूप का बोध हो गया होगा।
ताराचन्द्र-हो गया पूज्य ! आज आपने गागर में सागरके दर्शन करा दिये। अब एक जिज्ञासा और उठ रही है। वह यह है कि जब गृहस्थ हिंसा करने का अधिकारी है तब उसके लिये अहिंसा-पालन का उपदेश ही क्यों?
+ चक्रेण यः शत्रुभयंकरेण, जीत्वा नृपः सर्व नरेन्द्र चक्रम् । समाधि चक्रेण पुनर्जिगाय, महोदयो दुर्जयमोह चक्रम् ॥ वृहत्स्वयंभूस्तोत्र