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भामाशाह
प्रतापसिंह-पर यह कैसे संभव हो ?
भामाशाह-स्वपक्षीय नरेशों और सामन्तों को रणका निमंत्रण देने से।
प्रताप सिंह-कौन कौन नरेश हमारी इस रण-यात्रामें सहयात्री बन सकते हैं ?
भामाशाह- इसे रण-यात्रा न कह कर तीर्थ यात्रा कहें। प्रतापसिंह-कारण ?
भामाशाह-कारण इसकी प्रेरक स्वार्थ-भावना नहीं, वरन् देश, धर्म और संस्कृति-रक्षाकी तीन भावनाओं की त्रिवेणी ने इसे तीर्थ बना दिया है। अतः इसके निमित्त की गयी यात्रा को तीर्थ-यात्रा कहना अत्युक्ति नहीं।
प्रतापसिंह-धन्य हो मंत्रिवर ! अब कहिये, इस तीर्थ यात्रा में किन्हें निमन्त्रित करना कार्य-सिद्धि में सहायक होगा ?
भामाशाह-मेरे विचारसे ग्वालियर नरेश राजा रामशाह, मालुम्बा सरदार किशन सिंह तथा अन्य अनेक सामन्त हमारी इस यात्रा का निमंत्रण सहर्ष स्वीकार करेंगे। केवल सूचना भेजने का विलम्ब है। ___ प्रताप सिंह-विलम्बकी क्या आवश्यकता ? आप कल प्रभात में ही उपयुक्त नरेशों और सामन्तों को मेरी ओर से रण-निमंत्रण भेज दें।
भामाशाह-आप निश्चिन्त रहें, उक्त नरेशों की रणमें उपस्थिति मेरे कर्त्तव्य-पालन का प्रमाण होगी।