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भामाशाह
दृश्य २
स्थान-अरावली का शिखर। समय-सूर्यास्त के उपरान्त ।
( निष्पंद पवन, गगन में तोरामण्डल सहित नवोदित निशानाथ, यत्रतत्र खद्योतों की चमक, महाराणा प्रताप सिंह की विचार-परिषद्, सज्जित शिला पर महाराणा, पार्श्व में मेवाड़ामात्य भामाशाह, समीप ही लहराता हुआ केशरियाध्वज, एक ओर शस्त्र सज्जित राजपूत सामन्त और अन्य और धनुष वाण धारक भील नायक ) __ भामाशाह-( खड़े होकर ) मेवाड़ी वीरों! आपसे यह अविदित नहीं कि हमारी मातृ-भूमिपर आक्रमण करने के लिये शत्रु एक विशाल यवनवाहिनी के साथ आ रहें हैं । ऐसी दशा में हमें भी पूर्ण सजग हो जाना आवश्यक है । इसी निमित्त इस परिषदका आयोजन इस निर्जन में किया गया है। आशा है आप महाराणा के उद्गारों पर गम्भीरता से विचार विमर्श करेंगे।
प्रतापसिंह-शूरवीरों ! मानसिंह हम पर आक्रमण करने आ रहे हैं, यह चिन्ता का विषय नहीं है। चिन्ता का विषय वास्तवमें यह है कि हमारी अल्पसंख्यक सेना उनकी विशाल सेनासे मेवाड़ की रक्षा कैसे कर सकेगी ? अतः इस चिन्तासे मुक्त होने के लिये कोई न कोई उपाय शीघ्र ही करना है।
भामाशाह-मेवाड़ सूर्य ! चिन्ताके मेघ दूर करने के लिये सेना वृद्धि ही प्रमुख उपाय है।
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