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भामाशाह
भामाशाह-आदेश ही नहीं दिया, नृशंस यवनदल हल्दीघाटी की ओर प्रस्थान कर चुका है।
मनोरमा-क्या अविलम्व ही राजपूतों और यवनों में घमासान -समर होगा?
भामाशाह-राजपूतों और यवनों में नहीं, राजपूतों और राजपूतों में कहो। इस युद्ध में सहोदर ही सहोदर पर प्रहार करेगा, सजातीय ही सजातीय का विनाश करने में जुटेगा ।
मनोरमा-यह कैसे ?
भामाशाह-यह ऐसे, कि मानसिंह और शक्तिसिंह ही इस यवन दल के पथदर्शक बन कर आ रहे हैं।
मनोरमा-अपमानित मानसिंहका आना स्वाभाविक है, पर शक्तिसिंह भी आ रहे हैं यह सम्बाद अवश्य विस्मयजनक है । ___भामाशाह-कुछ भी विस्मयजनक नहीं, उसके विषय में ज्योतिषियों ने ऐसी ही भविष्यवाणी की थी।
मनोरमा-विपक्षियों का यह आक्रमण विफल करने के लिये क्या विचारा गया है ?
भामाशाह-इस विषय पर आज ही संध्या में अरावली की चोटी पर सब राजपूत- सामन्तों और भील नरेशों की उपस्थिति में विचारपरिषद् बैठने वाली है, वहीं जाने को मैं तत्पर हो रहा हूं। ___ मनोरमा-अवश्य जाइये। ऐसी योजना बनाइये जो मानसिंह के सारे प्रयत्नों पर पानी फेर दे।
भामाशाह-प्रयत्न ऐसा ही होगा। देखो यदि मुझे आने में विलम्ब हो तो तुम चिन्ता मत करना, अब मैं चलता हूं । ( गमन )
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