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भामाशाह
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भामाशाह – उत्कण्ठा है तो सुनो। मानसिंह के दिल्ली पहुंचने के पूर्व ही वहां शोलापुर विजयका उत्सव मनाया जा रहा था। मानसिंह का अभिनन्दन करने के लिये विशेष रूप से एक विशाल सभा का आयोजन किया गया था। यहां तक कि अकबर स्वयं उसका सम्मान करने को लालायित था ।
मनोरमा - क्यों न हो ? उष्टों के विवाह में गर्दभ गीत गायेंगे ही । पुनः क्या हुआ ?
भामाशाह – किन्तु जब मानसिंह प्रसन्न नहीं, विषण्ण मुख-मुद्रा बनाये सभाकक्ष में प्रविष्ट हुए तो यवन- नरेश के विस्मय की सीमा न रही । वह मानसिंह की चिन्ता और मनोव्यथा का कारण जानने को आतुर हो उठा । नर्त्तकियों के चरण जहां के तहां रुक गये, वाद्य वादकों की अंगुलियां जड़ हो गयीं, उल्लास का समारोह विषाद में परिणत हो गया । अकबर ने मानसिंह को पुचकारते हुए अपनी जिज्ञासा व्यक्त की ।
मनोरमा—उसका समाधान मानसिंह ने किस प्रकार किया ? भामाशाह - मानसिंह ने, निर्लज्ज मानसिंह ने सिसकारियां भरते यहाँ पर हुए अपमान का उल्लेख उसी प्रकार किया, जिस प्रकार कुलटा नारियां अपने पति से सौतजन्य अपमान का उल्लेख करती हैं। उसकी वाग्चातुरी और कथन - शैली से अकबर की कोपाग्नि प्रज्वलित हो गयी, वह हरे-भरे मेवाड़ को श्मसान बनाने के लिये तड़प उठा ।
मनोरमा - क्या उसने यवनवाहिनी को मेवाड़ पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया है ?
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