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________________ अङ्क ४ दृश्य १ स्थान - भामाशाह का भवन । सभय —– अपराह्न | - ( भामाशाह और मनोरमा ) मनोरमा – नाथ ! आपने अभी महाराणा के पास से आकर घड़ी भर भी विश्राम नहीं किया और अब पुनः कहीं जाने को तत्पर दिखते हैं, ऐसी क्या जटिल समस्या है जिसके लिये आप इतने व्यग्र रहते हैं ? भामाशाह – समस्या अभी जटिल नहीं, होने वाली है प्रिये ! मानसिंह का वह अपमान युद्ध की भूमिका वन कर रहा । मनौरमा - मुझे उसी दिन आभास हो गया था, कि यह विवाद अवश्य रंग लायेगा | क्या अभी कोई नवीन समाचार दिल्ली से प्राप्त हुए हैं ? - भामाशाह – हुए हैं, मैंने मानसिंह के पहुंचने पर अकबर की राजसभा का समाचार लाने के लिये जो गुपचर भेजा था, वह अपना कार्य कर कुशल से आ चुका है । मनोरमा — उसने अवश्य वहां घटित घटनाओं का यथार्थ उल्लेख किया होगा ? उन्हें सविस्तार सुनने की उत्कण्ठा मुझे भी है । ७६
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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