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भामाशाह
प्रताप सिंह-अस्तु ! (सामन्तों से ) मेरी सफलताके आधार स्तम्भो! इस बार के संग्राम में मेवाड़ की सुरक्षा आपके पराक्रम पर निर्भर है । अतः इस देश-सेवा के सुअवसर का सदुपयोग करो। मातृ-भूमि की रक्षा कर अपना क्षत्रिय-जन्म सार्थक करो। रणक्षेत्र में अपना पराक्रम दिखला शैशव में पिये गये जननी के दुग्ध की गरिमा रखो। शत्रु-सेनाका संहार कर अपनी रण-चातुरी का परिचय दो। क्या मैं विश्वास करूं कि शरीर में प्राण रहते आप कर्त्तव्य से विमुख न होंगे ? ___एक राजपूत-मेवाड़ के भाग्य-विधाता ! आप विश्वास ही नहीं इसे ध्रुवसत्य समझिये । हम इस स्वतन्त्रता-यज्ञ में प्राणों की आहुति सहर्ष देंगे । जब तक मेवाड़-गगन संकट के मेघों से मुक्त न हो जायेगा तब तक हम सदैव प्राणार्पण को तत्पर रहेंगे । मुण्ड कट जाने पर भी हमारा खण्ड दो-चार शत्रुओंका संहार कर ही धराशायी होगा।
प्रताप सिंह-साधुवाद ! वीर सामन्त साधुवाद !! आपके वचन से कई गुणित विश्वास मुझे आपके कम पर है।
भीलनायक- ( उठकर ) और हम सेवकों के लिये क्या आदेश है ?
प्रताप सिंह-आपके दलसे भी मुझे अनेक आशाएं हैं-कारण आपका दल मेरी जितनी सहायता कर सकता है उतनी अन्य कोई नहीं । आप अपने दल में मेवाड़ के सिंहासन के प्रति निष्ठाकी भावना को तीव्र करें जिससे कोई विश्वासघात न कर सकें।
भील नायक-यह आप क्या कल्पना करते हैं ? विश्वासघात दूर, हमारे दल का अबोध शिशु भी अपने कर्त्तव्य-पालन में असावधानी