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भामाशाह
मामाशाह - प्रेत आ सकते हैं, पर मनुष्य नहीं। आपका सन्देह निराधार है, यदि इसका कारण घृणा भाव होता तो यह स्वागतसमारोह करने की आवश्यकता ही क्या थी ? __ मानसिंह-(मध्य में ही ) चतुर मंत्रिन् ! आप अपनी तर्कणाशक्ति से मुझे कितना ही भुलाने का प्रयत्न करें, पर मैं पंचवर्षीय बालक नहीं जो ये मिष्टान्न दिखलानेसे रीझ जाऊँ। मुझे प्रेम चाहिये, वह भी युवराज से नहीं-राणा से-हिन्दू जाति के मुकुट से-मेवाड़ के निष्कलङ्क चन्द्र से।
भामाशाह-महाराज! इस आकांक्षा की पूर्ति महाराणा की अस्वस्थता के कारण अत्यन्त कठिन है, अतः युवराज अमरसिंह के साथ भोजन कर हमारा आतिथ्य सफल करें।
मानसिंह -बुद्धिमान् मंत्रिन् ! इस अपमान को आतिथ्य कह कर आतिथ्य का महत्व न घटायें। मैं राणा से मिलने के लिये यह दीर्घ यात्रा कर यहां आया और वे भोजन के समय भी दर्शन न दें। यह अवहेलना आतिथ्य नहीं, आतिथ्य का भयंकर उपहास है। ___ अमरसिंह-( समय ) महाराज ! इतने रुष्ट न हों, आप जैसा कहें, मैं वैसा ही करने को तत्पर हूं। ____ मानसिंह-(उच्च स्वर से ) युवराज ! तुम्हारे तत्पर होनेसे क्या ? राणा के तत्पर होने पर ही मेरी मनस्तुष्टि सम्भव है। अतः जाओ उनसे निवेदन करो कि मानसिंह आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। आपके पहुंचे बिना वे भोजन का एक कण भी स्पर्श करने को तत्पर नहीं।
अमरसिंह ( जाते हुए ) आप दो क्षण रुकं, मैं अभी दाजीराज का
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