________________
भामाशाह अमरसिंह-(विनय से ) महाराज ! मैं तन-मन-धन से आपके अनुकूल आचरण करूंगा। अतः दाजीराज* की अनुपस्थिति का विचार त्याग भोजन स्वीकार करें।
मानसिंह-अनुकूल आचरण करने से क्या ? मैं इन मिष्टान्नों से उदर-गर्त भरने यहां नहीं आया, राणा का प्रेम पाने आया हूं। यदि वह नहीं मिला तो अमृत भी विषवत् त्याज्य होगा। ___ भामाशाह-(विनयपूर्वक ) महाराज ! इतने रुष्ट होने की आवश्यकता नहीं, राणा और युवराज में कोई अन्तर नहीं। उदयकालीन दिवाकर भी प्रौढ़ दिवाकर के समान तम-नाश करने की क्षमता रखता है।
मानसिंह-रखता है, पर इससे क्या ? मध्याह्न के दिवाकर के समान वह तेजस्वी नहीं होता। अतः राणा के रहते उनके स्थान की पूर्ति युवराज से असंभव है । पुण्डरीक से निस्सरित पराग से पुण्डरीक का कार्य नहीं लिया जा सकता।
भामाशाह-आपका कथन कुछ अंशों में सत्य अवश्य है, पर महाराणा की अस्वस्थता ही उनकी अनुपस्थिति का कारण है-और कुछ नहीं।
मानसिंह-मेरी आत्मा यह स्वीकार करने को तत्पर नहीं, अवश्य ही इसका कारण मेरे प्रति घृणा भाव है। अन्यथा प्रेमीजन चिता से भी प्रेत बन कर मिलने चले आते हैं। * 'दाजीराज' शब्द मेवाड़ के राजा व राजवंशी अपने बाप के लिये बोलते हैं। वीर विनोद पृ० १६४
६६