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भामाशाह
दृश्य ७ स्थान -भोजन-गृह समय-मध्याह्न ( अमरसिंह और भामाशाह के साथ मानसिंह का प्रवेश ) भामाशाह-महाराज ! आसन पर विराजने की प्रार्थना है।
मानसिंह-महाराणा की प्रतीक्षा कर लीजिये, ऐसी शीघ्रता ही क्या ?
भामाशाह-आप तो विराजिये।
( मानसिंह का आसन ग्रहण और राजपाचक द्वारा दुग्ध तथा विभिन्न शाकों के पात्रों के चषकों और घृत से सुवासित मधुर मिष्टान्नों के रजतपात्रों से सज्जित स्वर्ण थाल का आनयन) ____ मानसिंह-( दो क्षण महाराणा की प्रतीक्षा कर ) मंत्रिवर ! स्वर्ण-थाल में भोजन सामग्री सज्जित हो चुकी, पर राणा अभी तक नहीं पधारे ? उनकी अनुपस्थिति से यह आतिथ्य निष्प्राण-सा प्रतीत होता है। अतः इसमें प्राण-प्रतिष्ठा करने के लिये उनकी उपस्थिति अनिवार्य है और मेरा हृदय भी उनके साथ ही बैठ कर भोजन करने को उत्कण्ठित है।
भामाशाह-महाराज ! आज अस्वस्थ होने से ही महाराणा स्वयं नहीं आ सके, पर उनके ज्येष्ठ पुत्र युवराज अमरसिंह आपकी सेवार्थ प्रस्तुत हैं। __ मान सिंह-( किंचित् क्रोध से ) इससे क्या ? राणा के अभाव की पूर्ति इनसे किसी भी प्रकार संभव नहीं।