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भामाशाह
अभ्यर्थना के परिधान में तिरस्कार के दर्शन हों। जो भी होना हो, हो । मानसिंह किसी से भयभीत होने का नहीं । वह दिल्लीश्वर अकबर को भी कठपुतली से अधिक महत्व नहीं देता । देखना है, कौन मरणेच्छु मुझे अपमानित करने का साहस करता है ? ( अमर सिंह और भामाशाह को आते देख प्रसन्न मुद्रा में कुमार अमर सिंह से ) आइये, पे, कुमार! आपकी व्यवस्था और उत्साह से मुझे अत्यन्त प्रसन्नता है । राणा का यह आतिथ्य मुझे चिरस्मरणीय रहेगा । ( भामाशाह ) आपका भी प्रबन्ध, चातुर्य-स्पर्द्धा का विषय है । इस परिश्रम और सौजन्य के लिये मैं आपका प्रशंसक हूँ ।
भामाशाह - महाराज ! ऐसे शब्द मेरे लिये शोभास्पद नहीं । हमने स्वामि- आज्ञा का ही पालन किया है और कुछ नहीं । अब भोजन की बेला है, अतः भोजनगृह में प्रवेश करने के लिये हमारा विनम्र अनुरोध है ।
मानसिंह – चलिये, आपका अनुरोध टालनेकी क्षमता मुझमें नहीं । ( स्कन्ध पर चीनांशुक डाल भोजनार्थ गमन )
पटाक्षेप
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