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भामाशाह
अरे ! रवि अक्षय छवि का देव,
और तू एक तुच्छतम कीट। __ सोच तू ही क्या कीट समक्ष
__ नमित हो सकता देव-किरीट ? पहिन भी स्वर्ण-शृंखला श्वान,
कहीं सिंह से पाया सम्मान ? ____ महत् से कैसा लघु का मान ? न जब तक हरता दिन नटराज, निशा-गोपी का तिमिर-दुकूल । तभी तक उसके अंचल मध्य,
किलोलें कर ले मद से फूल । पुनः तव छवि को सूर्य-प्रताप,
एक क्षण में कर देगा म्लान ।
____ महत् से कैसा लघु का मान ? मानसिंह-(स्वगत ) यह गीत गीत नहीं, मेरे स्वाभिमान पर वन-प्रहार है, इसने मेरे क्षणभर पूर्व के विचार विद्युत्तरंग से विलीन कर दिये । कोमलांगी कल्पना-कोकिला के पंख खोल उसे अनन्त व्योम में अन्तर्धान कर दिया। ( रुक कर ) चलो अच्छा हुआ, जो इस गीत ने समयसे पूर्व मुझे सचेत कर दिया । निश्चय ही पुष्पहारसा मोहक आज का यह स्वागत अपने अंचल में अपमान का नाग छिपाये है, जो किसी भी क्षण फुफकार सकता है। अतः यहां के वातावरण से, यहां के समीरण तक से मुझ सावधान रहना होगा।