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________________ भामाशाह भामाशाह-आप इस एकान्त कक्ष में विश्राम कीजिये, यहां पर्याप्त शीतलता है। मानसिंह-ठीक है, यह स्थान सुन्दर होने के साथ मेरी रुचि के अनुरूप है। अब आप मेरे विषय में कोई चिन्ता न करें, मैं यहीं विश्राम कर रहा हूं। भामाशाह-( उपस्थित सज्जनों से ) आप सब महानुभाव भी जायें, जिससे कोलाहल शान्त हो। ( अमरसिंहसे ) चलिये, हम भी चलें। ( सब का गमन ) मानसिंह-(स्वगत ) कितनी सुन्दर व्यवस्था है। मेवाड़-नरेश से इतना सम्मान पाने की आशा मुझे स्वप्न में भी न थी, पर आज का यह समारोह सूचित करता है कि परिस्थितियों ने राणा की विचारधारा को परिवर्तित कर दिया है। आपत्तियों के भूचाल ने उनके सिद्धान्तों के सौध को ढा दिया है। अब कदाचित् उनके हृदय में भी अकबर की राजसभा में स्थान पाने की भावना जागृत हो उठी है, तभी तो उन्होंने मेरी आज किंचित् भी उपेक्षा नहीं की और मेरे स्वागत में अपने कोष का यथेष्ठ उपयोग किया है। निस्सन्देह आज का यह आयोजन मेरी सफलता के लिये शुभ शकुन है । ( नेपथ्य से गीत की ध्वनि) महत् से कैसा लघु का मान ? क्षणिक छवि के स्वामी खद्योत, प्रखर रविकी छवि को पहिचान । महत से कैसा लघु का मान ?
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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