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सप्तम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में केवलज्ञान
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श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार केवलज्ञान का विषय
केवलज्ञान का विषय, संक्षेप में चार प्रकार का है, यथा -१. द्रव्य, २. क्षेत्र, ३. काल और ४. भाव 57
द्रव्य से - केवलज्ञानी, सभी द्रव्यों को जानते देखते हैं 58 केवलज्ञानी १. धर्म २. अधर्म ३. आकाश ४. जीव ५. पुद्गल और ६. काल, इन छहों द्रव्यों में, जो द्रव्य, द्रव्य से जितने परिमाण हैं और उनके प्रत्येक के जितने प्रदेश हैं उन सभी द्रव्यों को और उनके प्रत्येक के सभी प्रदेशों को केवलज्ञान से प्रत्यक्ष जानते हैं और केवलदर्शन से प्रत्यक्ष देखते हैं।
क्षेत्र से - केवलज्ञानी, सभी क्षेत्र को-सर्व लोकाकाश और सर्व अलोकाकाश को जानते देखते हैं 59 अर्थात् छहों द्रव्यों में जो द्रव्य, जितने क्षेत्र प्रमाण है, उसे केवलज्ञानी, अपने केवलज्ञान से उतने क्षेत्र प्रमाण जानते हैं और केवलदर्शन से देखते हैं अर्थात् केवलज्ञानी केवलज्ञान से सर्व क्षेत्रवर्ती सर्वद्रव्यपर्याय को जानते देखते हैं।
काल से - केवलज्ञानी, सभी काल (सर्व भूत, सर्व वर्तमान और सर्व भविष्य) को जानते देखते हैं 60 अर्थात् जो द्रव्य, जितने काल परिमाण है, केवलज्ञानी केवलज्ञान से उस द्रव्य को उतने काल परिमाण जानते हैं और केवल दर्शन से देखते हैं अथवा केवलज्ञानी केवलज्ञान से सर्व कालवर्ती सर्व द्रव्य पर्याय को जानते देखते हैं।
भाव से - केवलज्ञानी, सभी भावों (औदयिक आदि छहों भावों) को जानते हैं। इसके साथ ही वे १. किस द्रव्य के २. किस प्रदेश में ३. किस क्षेत्र में ४. किस काल में ५. किस गुण की ६. क्या पर्याय हुई, क्या पर्याय हो रही है और क्या पर्याय होगी? यह सब केवलज्ञानी, केवलज्ञान से जानते हैं और केवल दर्शन से देखते हैं।
बौद्धाचार्य धर्मकीर्ति का कथन है कि 'ईश्वर सर्व पदार्थों को जाने अथवा न जाने, वह इष्ट पदार्थों को जाने, इतना ही बस है। यदि ईश्वर कीड़ों की संख्या गिनने बैठे तो वह हमारे किस काम की है?' 'अतएव ईश्वर के उपयोगी ज्ञान की ही प्रधानता है, क्योंकि यदि दूर तक देखनेवाले को ही प्रमाण माना जाये तो फिर हमें गिद्ध पक्षियों की भी पूजा करनी चाहिए। इस मत का निराकरण करने के लिए ग्रंथकार ने अनंतविज्ञान विशेषण दिया है और यह विशेषण ठीक ही है, क्योंकि अनंतज्ञान के बिना किसी वस्तु का भी ठीक-ठीक ज्ञान नहीं हो सकता। आगम (आचारांगसूत्र) का वचन भी है- 'जो एक को जानता है वही सर्व को जानता है और जो सर्व को जानता है वह एक को जानता है। 262
प्रश्न - क्या केवलज्ञान की पर्यायें तथा केवलज्ञान से जानने योग्य द्रव्यों की पर्याय तुल्य हैं?
उत्तर - केवलज्ञान की पर्यायें शक्ति की अपेक्षा अनन्त गुणा संभव हैं। यानी केवली भगवान् जितने भी ज्ञेय पदार्थ हैं, उन सबको तो जानते देखते ही हैं, लेकिन यदि इनसे अनन्त गुणा ज्ञेय पदार्थ और भी होते, तो केवलज्ञान से उन्हें भी देखा जाना संभव था। जब ज्ञेय पदार्थ इतने ही हैं, तो इतने ही देखते हैं। लेकिन ज्ञेय पदार्थों का इतना ही होना, इस बात का द्योतक नहीं है कि वे इतना ही देख सकते हैं।
प्रश्न - केवली भगवान् जितने भाव ज्ञान द्वारा जानते और देखते हैं, क्या वे सभी भाव वाणी द्वारा कह सकते हैं? 257. तं समासओ चउव्विहं पण्णत्तं, तं जहा - दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ। - पारसमुनि, नंदीसूत्र, पृ. 93 258. तत्थ दव्वओ णं केवलणाणी सव्वदव्वाई जाणइ पासइ। -पारसमुनि, नंदीसूत्र, पृ. 93 259. खित्तओ णं केवलणाणी सव्वं खित्तं जाणइ पासइ। -पारसमुनि, नंदीसूत्र, पृ. 94 260. कालओ णं केवलणाणी सव्वं कालं जाणइ पासइ। -पारसमुनि, नंदीसूत्र, पृ. 94 261.भावओ णं केवलणाणी सव्वे भावे जाणइ पासइ। -पारसमुनि, नंदीसूत्र, पृ. 94 262. स्याद्वादमंजरी गाथा 1. पृ. 4-5