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________________ [450] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन 9. अनंत पर्याय मत्यादिकज्ञान जिस प्रकार सर्वद्रव्यों को उनकी कुछ पर्यायों को परोक्षप्रत्यक्ष रूप से जानते हैं, उस प्रकार यह ज्ञान नहीं जानता है, किंतु यह तो समस्त द्रव्यों को और उनकी समस्त पर्यायों को युगपत् प्रत्यक्ष जानता है, इसलिए यह अनंत पर्याय कहा जाता है।" 10. अनन्त वह पर्याय से अनन्त है जो ज्ञान अनंत होता है, उसका नाम केवलज्ञान है। क्योंकि एक बार आत्मा में इस ज्ञान के हो जाने पर फिर उसका प्रतिपात नहीं होता है तथा ज्ञेय पदार्थ अनन्त होते हैं और जो उन अनंत ज्ञेयों को जानता है उसे भी अनंत माना गया है। अथवा जानने योग्य अनन्त विषय होने से यह अनन्त पर्याय वाला है, अतः केवलज्ञान अनन्त है " अथवा जितने ज्ञेयपदार्थ हैं, उनसे अनन्तगुण भी ज्ञेयपदार्थ हों तो भी उनको जानने की क्षमता होने से केवलज्ञान अनंत हैं। 11. एकविध - सर्वशुद्ध होने से एक प्रकार का है। 15 सभी प्रकार के ज्ञानावरण का क्षय होने से उत्पन्न होता है, अतः यह एकविध है।" षट्खण्डागम के अनुसार जो ज्ञान, भेद रहित हो, वह 'केवलज्ञान' है। भेदरहितता एकत्व की सूचक है।" 12. असपत्न सपत्न का अर्थ शत्रु है, केवलज्ञान के शत्रु कर्म हैं, वे शत्रु नहीं रहे हैं, इसलिए केवलज्ञान असपत्न है। उसने अपने प्रतिपक्षी का समूल नाश कर दिया है। - 13. शाश्वत लब्धि की अपेक्षा यह प्रतिक्षण स्थायी है, अंतर रहित - निरन्तर विद्यमान रहता है निरंतर उपयोग वाला होने से शाश्वत है 1 14. अप्रतिपाती नाश को प्राप्त नहीं होने से अप्रतिपाती है ।" लब्धि की अपेक्षा त्रिकाल स्थायी है, अन्तरहित होने से अनन्तकाल तक विद्यमान रहता है अर्थात् उत्पन्न होने के बाद जिसका नाश नहीं होता है, वह अप्रतिपाती ज्ञान है । वह सर्व द्रव्यों के परिणाम प्राप्त भावों के ज्ञान का कारण है। 2 - प्रश्न जो शाश्वत होता है वह अप्रतिपाती तो होता ही है, फिर 'अप्रतिपाती' अलग विशेषण क्यों दिया है? - उत्तर 'शश्वद् भवं शाश्वतम्' इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो अनवरत होता है, वह शाश्वत कहलाता है अर्थात् कोई भी पदार्थ जितने काल तक रहता है, तो वह निरंतर ( शाश्वत) ही रहता है । परंतु इस अर्थ में से अप्रतिपाती का अर्थ स्फुट नहीं होता है। यहाँ 'अनवरत रहने वाला ज्ञान कितने समय तक रहेगा? इस प्रश्न की संभावना रहती है, इसलिए 'अप्रतिपाती' कहा गया है । केवलज्ञान एक बार होने के बाद हमेशा रहता है, उसका नाश नहीं होता है। इस बात को पुष्ट करने के लिए शाश्वत और अप्रतिपाति विशेषण दिये गए हैं 43. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 828 42. घासीलालजी महाराज, नंदीसूत्र, पृ. 167 44. तच्चानन्तज्ञेयविषयत्वेना ऽनन्तपर्यायत्वादनन्तम् । मलधारी हेमचन्द्र, गाथा 828, पृ. 336 45. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 828 46. समस्तावरणक्षयसंभूतत्वादेकविधं मलधारी हेमचन्द्र, पृ. 337 47. षट्खण्डागम (धवला), पु. 12, सूत्र 4.2.14.5, पृ. 480 48. षट्खण्डागम पु. 13 सूत्र 5.5.81 पृ. 345 49. आवश्यकनिर्युक्ति, गाथा 77, विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 828 - 50. शाश्वद्भावात् शाश्वतं सततोपयोगमित्यर्थः । मलधारी हेमचन्द्र, पृ. 337 51. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 828 52. अप्रतिपाति-अव्ययं सदाऽवस्थायीत्यर्थः । मलधारी हेमचन्द्र, पृ. 337 53. प्रशमरति, भाग 2, भद्रगुप्तजी, परिशिष्ट, पृ. 266,267
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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