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________________ [446] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन केवलज्ञान का लक्षण श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में केवलज्ञान की सत्ता को निर्विवाद रूप से स्वीकार किया गया है। दोनों परम्पराओं के आचार्यों ने केवलज्ञान को परिभाषित किया है, जो निम्न प्रकार से हैश्वेताम्बर आचायों की दृष्टि में केवलज्ञान का लक्षण - 1. आचार्य भद्रबाहु ने आवश्यकनियुक्ति में कहा है कि सभी द्रव्यादि के परिणाम की सत्ता को विशेष जाने के कारण अनन्त, शाश्वत, अप्रतिपाती और एक प्रकार का जो ज्ञान है, वह केवलज्ञान है। 2. नंदीसूत्र के अनुसार - जो ज्ञान असहाय, शुद्ध, संपूर्ण, असाधारण और अनंत इन पांच विशेषणों से युक्त है, वह केवलज्ञान है।" 3. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण (सप्तम शती) के मन्तव्यानुसार - शुद्ध, परिपूर्ण, असाधारण व अनंत, ऐसा जो ज्ञान है उसे केवल ज्ञान कहा जाता है। अर्थात् पर्याय अनन्त होने से केवलज्ञान अनन्त है। सदा उपयोगयुक्त होने से वह शाश्वत है। इसका व्यय नहीं होता, इसलिए अप्रतिपाति है। आवरण की पूर्ण शुद्धि के कारण वह एक प्रकार का है। मलधारी हेमचन्द्र (द्वादश शती) ने इनका स्पष्टीकरण निम्न प्रकार से किया है - 1. केवलज्ञान मति आदि ज्ञानों से निरपेक्ष है, इसलिए असहाय है। 2. वह निरावरण है, इसलिए शुद्ध है। 3. अशेष आवरण की क्षीणता के कारण प्रथम क्षण में ही पूर्णरूप में उत्पन्न होता है, इसलिए वह सकल-सम्पूर्ण है। 4. वह अन्य ज्ञानों के सदृश नहीं है, इसलिए असाधारण है। 5. ज्ञेय अनन्त हैं, इसलिए वह अनन्त है।4। ____4. नंदीचूर्णि में जिनदासगणि (सप्तम शती) ने वर्णन किया है कि जो मूर्त और अमूर्त सब द्रव्यों को सर्वथा, सर्वत्र और सर्वकाल में जानता-देखता है, वह केवलज्ञान है। 5. वादिदेवसरि (द्वादश शती) ने प्रमाणनयतत्त्वालोक में उल्लेख किया है कि सम्यग्दर्शन आदि अन्तरंग सामग्री और तपश्चर्या आदि बाह्य सामग्री से समस्त घाति कर्मों के क्षय से उत्पन्न होने वाला तथा समस्त द्रव्यों और समस्त पर्यायों को प्रत्यक्ष करने वाला केवलज्ञान सकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहलाता है। 6. तत्त्वार्थभाष्य के टीकाकार सिद्धसेनगणि के अनुसार - केवल अर्थात् सम्पूर्ण ज्ञेय को जानने वाला ज्ञान केवलज्ञान है। वह समस्त द्रव्यों एवं उनकी पर्यायों का परिच्छेदक होता है, अथवा मति आदि ज्ञानों से रहित ज्ञानावरण कर्म के पूर्ण क्षय से उत्पन्न एक मात्र ज्ञान केवलज्ञान है। दूसरे कोई भेद-प्रभेद नहीं होते हैं।" ____7. आचार्य हेमचन्द्र (द्वादश शती) के कथनानुसार - आवरणों का सर्वथा क्षय हो जाने पर चेतन आत्मा का स्वरूप प्रकट हो जाना, मुख्य प्रत्यक्ष है। 10. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 77 11. युवाचार्य मधुकरमुनि, नंदीसूत्र, पृ. 68 12. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 84 13. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 828 14. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 84 की टीका, हारिभद्रीय, नन्दीवृत्ति, पृ. 19 15. नंदीचूर्णि पृ. 21 16. सकलं तु सामग्री विशेषतः समुद्भूतं समस्तावरणक्षयोपक्षं, निखिलद्रव्यपर्यायसाक्षात्कारिस्वरूपं केवलज्ञानम्। - प्रमाणनयतत्त्वालोक सूत्र. 2.23, पृ. 24 17. केवलं-सम्पूर्णज्ञेयं तस्स तस्मिन् वा सकलज्ञेये यज्ज्ञानं तत् केवलज्ञानम्, सर्वद्रव्यभावपरिच्छेदीतियावत्। अथवा केवलं एकं मत्यादिज्ञानरहितमात्यन्तिकज्ञानावरणक्षयप्रभवं केवलज्ञानं अवद्यिमानस्वप्रभेदम्। -सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्र, 1.9 पृ. 70 18. तत सवर्थावरणविलये चेतनस्य स्वरूपाविर्भावो मुख्यं केवलम्। - प्रमाणमीमांसा, (पं. सुखलाल सिंघवी) अ. 1.15 पृ.10
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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