________________ [394] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन अवधिज्ञान और देशविरति सामायिक - मलधारी हेमचन्द्र ने बृहद्वृत्ति में उल्लेख किया है कि श्रावक अवधिज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् देशविरति को प्राप्त नहीं करता। देशविरति आदि गुणों के अभ्यास के पश्चात् ही अविधज्ञान प्राप्त होता है, यह तथ्य हमें गुरु-परम्परा से ज्ञात हुआ है। इसका रहस्य तो केवली जानते हैं। 78 टीकाकार का यह कथन आगमानुसार नहीं है, क्योंकि श्रावक या सम्यग्दृष्टि को अवधिज्ञान हो जाने के बाद सर्वविरति, देशविरति या पूर्वव्रतों को और संक्षिप्त करके देशविरति को बढ़ाने का आगम में कहीं पर निषेध नहीं है। इसलिए अवधि के बाद भी सम्यग्दृष्टि जीव, श्रावक बन सकता है एवं श्रावक साधु बन सकता है। क्योंकि अवधिज्ञान क्षयोपशम भाव है, उदयभाव नहीं है, क्षयोपशम भाव देशविरति, सर्वविरति में सहयोगी समझा जाता है, बाधक नहीं। इस अध्याय में अवधिज्ञान का निरूपण प्रमुखतः विशेषावश्यकभाष्य और उसकी टीका को आधार बनाकर किया गया है। साथ ही अन्य श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों का भी प्रचुर उपयोग किया गया है। अवधिज्ञान के सम्बन्ध में विभिन्न द्वारों के माध्यम से जो चर्चा की गई है, उससे अवधिज्ञान के सम्बन्ध में प्राप्त वर्णन की भी समीक्षा की गई है। उसी के आधार पर दोनों परम्पराओं में अवधिज्ञान के स्वरूप में जो अन्तर हैं, उन्हें संक्षेप में निम्नांकित बिन्दुओं में प्रस्तुत किया जा सकता है - (1) श्वेताम्बर परम्परा में अवधिज्ञान के कुल ग्यारह भेदों का उल्लेख मिलता है, यथा 1. भवप्रत्यय, 2. गुणप्रत्यय, 3. अनुगामी, 4. अननुगामी, 5. वर्द्धमान, 6. हीयमान, 7. प्रतिपाति, 8. अप्रतिपाति, 9. अवस्थित, 10. अनवस्थित, 11. परमावधि, इस प्रकार अवधिज्ञान के कुल ग्यारह भेद होते हैं। दिगम्बर परम्परा में श्वेताम्बर परम्परा में मान्य ग्यारह भेद सहित, 12. देशावधि, 13. सर्वावधि, 14. एकक्षेत्र और 15. अनेकक्षेत्र इस प्रकार कुल पन्द्रह भेद प्राप्त होते हैं। (2) निगोद के जीव एक मुहूर्त में श्वेतांबर मान्यता से 65536 भव और दिगम्बर मान्यता से अंतर्मुहूर्त में 66336 भव करता है। (3) श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार निम्न लिखित क्षेत्र के साथ निम्न लिखित काल देखता है-१. हाथ प्रमाण क्षेत्र में अन्तर्मुहूर्त प्रमाण काल तक रूपी द्रव्यों को देखता है, 2. गाऊ प्रमाण क्षेत्र में दिवस अन्तर्भाव पर्यन्त काल तक देखता है, 3. योजन प्रमाण क्षेत्र में दिवस पृथक्त्व पर्यन्त काल देखता है, 4. 25 योजन क्षेत्र में पक्षान्त भाग काल तक देखता है। दिगम्बर परम्परा में इस प्रकार देखता है - 1. हाथ प्रमाण क्षेत्र में पृथक्त्व आवलिका (7-8 आवलिका) काल तक देखता है, 2. गाऊ प्रमाण क्षेत्र में अन्तर्मुहूर्त (साधिक उच्छास) काल तक देखता है, 3. योजन प्रमाण क्षेत्र में भिन्नमुहूर्त (एकसमय कम मुहूर्त) काल देखता है, 4. 25 योजन क्षेत्र में दिवसअंतो (एकदिवस में कुछ कम) काल तक देखता है। (4) श्वेताम्बर परम्परा में अवधिज्ञान का क्षेत्र प्रमाणांगुल से नापा जाता है। दिगम्बर परम्परा में अवधि के कुछ विषय क्षेत्र को उत्सेधांगुल से और कुछ क्षेत्र को प्रमाणांगुल से नापा जाता है। 478. श्रावकोऽप्यवधिज्ञानं प्राप्य देशविरतिं प्रतिपद्यत इत्येवं न। किन्तु पूर्वमभ्यस्तदेशविरतिगुणः पश्चादवधिं प्रतिपद्यते, देशविरत्यादिगुणप्राप्तिपूर्वकत्वादवधिज्ञानप्रतिपत्तेरित्येतावद् गुरुभ्योऽस्माभिरवगतम् / तत्त्वं तु केवलिनो विदन्ति / - विशेषावश्यभाष्य मलधारी वृत्ति पृ. 158