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________________ पंचम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान [383] 14. चक्रवर्ती - जो चौदह रत्न और छः खण्ड के स्वामी होते हैं, वे चक्रवर्ती कहलाते हैं। जिस लब्धि से चक्रवर्ती पद की प्राप्ति होती है, वह चक्रवर्ती लब्धि कहलाती है। 15. बलदेव - इस लब्धि से बलदेव पद की प्राप्ति होती है। बलदेव वासुदेव के बड़े भाई होते हैं। 16. वासुदेव - जो सात रत्न और तीन खण्ड के अधिपति होते हैं, वे वासुदेव कहलाते हैं। जिस लब्धि से वासुदेव पद की प्राप्ति होती है, वह वासुदेव लब्धि कहलाती है।61 वीर्यान्तराय के क्षयोपशम से वासुदेव का बल अतिशय होता है। जैसे कि कुएं के तट पर बैठे हुए वासुदेव को सांकल से बांधकर सोलह हजार राजा सहित हाथी, अश्व, रथ, पैदल सैनिक रूप चतुरंगिणी सेना खींचे तो भी नहीं खींच पाते हैं और वासुदेव सीधे हाथ से भोजन या विलेपन करता हुआ उल्टे हाथ से सांकल को अपनी ओर आसानी से खींच लेता है। चक्रवर्ती भी बल के विषय में वासुदेव के समान ही होते हैं, लेकिन यहाँ सोलह हजार के स्थान पर बत्तीस हजार राजा लेना चाहिए। क्योंकि वासुदेव के बल से चक्रवर्ती का बल दुगुना होता है। सामान्य लोगों से बलदेव का बल भी बहुत अधिक होता है और जिनेश्वरों का बल तो अपरिमित होता है। 62 लब्धि और औदयिक आदि भाव उपर्युक्त लब्धियों के अलावा भी दूसरी अन्य लब्धियाँ जीवों के शुभ शुभतर-शुभतम परिणामों के वश उत्पन्न होती हैं। उनके मुख्य भेद चार और अवान्तर भेद अनेक हैं। 1. कर्मों के उदय से प्राप्त - वैक्रियनामकर्म के उदय से वैक्रियलब्धि और आहारकनामकर्म के उदय से आहारक लब्धि प्राप्त होती है। इस प्रकार और भी लब्धियाँ हैं जो कर्मों के उदय से प्राप्त होती हैं। 2. कर्मों के क्षय से प्राप्त - दर्शनमोहनीय आदि कर्म के क्षय से क्षायिक समकित, क्षीण मोहपना और सिद्धत्व आदि लब्धियाँ होती हैं। 3. कर्मों के क्षयोपशम से प्राप्त - दानान्तराय, लाभान्तराय आदि कर्म के क्षयोपशम से अक्षीणमहानसी आदि लब्धि होती है। 4. कर्मों के उपशम से प्राप्त - दर्शनमोहनीय आदि कर्मों के उपशम से औपशमसमकित और उपाशांतमोह आदि भी लब्धियां होती हैं।63 विशेषावश्यकभाष्य में वर्णित लब्धियों के अतिरिक्त लब्धियाँ विशेषावश्यकभाष्य के अलावा अन्य आगम-ग्रंथों में अनेक लब्धियों के नाम आये हैं, किन्तु उन सबके नाम एक ही जगह नहीं आये हैं। प्रवचनसारोद्धार द्वार 270 में गाथा 1492 से 1508 तक 28 लब्धियों के नाम, अर्थ आदि का विशेष विवेचन प्राप्त होता है। वे इस प्रकार हैं - 1. आम|षधि लब्धि 2. विपुडौषधि 3. खेलौषधि 4. जल्लौषधि 5. सर्वोषधि 6. संभिन्नश्रोत लब्धि 7. अवधिलब्धि 8. ऋजुमति लब्धि 9. विपुल मति लब्धि 10. चारण लब्धि 11. आशीविष लब्धि 12. केवली लब्धि 13. गणधर लब्धि 14. पूर्वधर लब्धि 15. अरिहंत (तीर्थंकर) लब्धि 16. चक्रवर्ती लब्धि 17. बलदेव लब्धि 18. वासुदेव लब्धि 19. क्षीरमधुसर्पिराश्रव लब्धि 20. कोष्ठक बुद्धि लब्धि 21. पदानुसारी लब्धि 22. बीजबुद्धि लब्धि 23. तेजो लेश्या लब्धि 14 आहारक लब्धि 25. शीतलेश्या लब्धि 26. वैकुर्विक देह लब्धि 27. अक्षीणमहानसी लब्धि 28. पुलाक लब्धि। 461. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 779-793 462. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 794-798 463. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 801
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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