SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 396
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान [371] शंका - उत्पाद-प्रतिपात आदि विरोधी धर्म एक समय में अवधि में किस प्रकार घटित होते हैं? समाधान - यदि संपूर्ण अवधिज्ञान में उत्पाद और प्रतिपात एक साथ मानेंगे तो विरोध उत्पन्न होता है, लेकिन यहाँ उत्पाद और प्रतिपात को विभाग रूप से स्वीकार करने में कोई विरोध नहीं होगा, क्योंकि जैसे कोई एक ओर घास आदि जलाता है तथा साथ ही दूसरी ओर जलती हुई घास को बुझाता है। वैसे ही एक ही समय में एक देश में वृद्धि हो रही है तथा उसी समय में दूसरे देश में नाश हो रहा है। इसलिए बाह्य अवधि में एक समय में उत्पाद प्रतिपात विरोधी नहीं हैं।12 (2) आभ्यन्तर अवधि का स्वरूप आवश्यकनियुक्तिकार के अनुसार - आभ्यंतर अवधि की प्राप्ति जिस क्षेत्र में होती है, उस क्षेत्र में वहाँ से आरंभ करके वह अवधिज्ञानी अंतर रहित संबंधपूर्वक संख्याता अथवा असंख्याता योजन पर्यंत क्षेत्र को अवधिज्ञान से जानता और देखता है। 13 आवश्यकचूर्णि में भी ऐसा ही उल्लेख है। 14 जिनभद्रगणि का अभिमत है कि जिस अवधिज्ञानी का अवधिज्ञान जहाँ उत्पन्न होता है वहाँ दीपक की प्रभा के समान चारों ओर से संबद्ध होता है, उसे आभ्यन्तर अवधिज्ञान कहते हैं।15 मलधारी हेमचन्द्र का मन्तव्य है कि जिस अवधिज्ञान में प्रदीप की प्रभा की तरह आभ्यंतर अवधि अवधिज्ञानी से निरन्तर सम्बद्ध, अखंड, विभागरहित और एक स्वरूप होता है, वह अदेशावधि (सर्वावधि) कहलाता है। उत्पाद और प्रतिपाद के सम्बन्ध में मन्तव्य इस प्रकार अखंड आभ्यंतर अवधिज्ञान में एक समय में एक साथ उत्पाद और प्रतिपात नहीं होता है, एक समय में एक ही होता है। एक साथ दो विरोधी धर्मों का संबंध नहीं होता है। जैसे कि आवरण रहित दीपक की प्रभा का चारों ओर से संकोच अथवा विस्तार में से एक ही होता है अर्थात् युगपत् एक दिशा में विस्तार और दूसरी दिशा में संकोच नहीं होता है। क्योंकि वस्तु की उत्पत्ति और नाश एक साथ एक ही धर्म में नहीं होते हैं। जैसे अंगुली रूप द्रव्य जो धर्म से सरल होती है, उससे सरलता रूपी धर्म का नाश नहीं होता है। क्योंकि समान धर्म समान धर्म का नाशक नहीं होता है। लेकिन एक ही वस्तु में भिन्न धर्मों के कारण उत्पाद और नाश होता है। किन्तु जिस समय अंगुली रूपी द्रव्य में सरलता उत्पन्न होती है उसी समय वक्रता का नाश होता है, लेकिन अंगुली रूपी द्रव्य अवस्थित रहता है।17। जिस वस्तु ने सत्ता प्राप्त की हो, उसी वस्तु का नाश संभव है। जिसने सत्ता प्राप्त नहीं की उसका नाश नहीं होता, जैसे गधे के सींग के समान। एक समय में वस्तु का एक ही स्वरूप होता है। जिस समय सरलपने के धर्म से सरलपना उत्पन्न होता है और तत्क्षण ही उसी धर्म से उसका विनाश मानेंगे तो उस (सरलता) का नाश सर्वदा के लिए हो जाएगा। जिससे उत्पत्ति का अभाव हो जायेगा। जो वस्तु स्व-स्वरूप को प्राप्त नहीं होगी तो उसकी सत्ता भी नहीं होगी। इस प्रमाण से सर्वदा वस्तु की उत्पत्ति का अभाव होगा। जब वस्तु की सत्ता (उत्पत्ति) नहीं होगी तो उसका विनाश भी नहीं होगा तथा उत्पत्ति और विनाश के अभाव में वस्तु अवस्थित भी कैसे रहेगी? जब वस्तु का उत्पाद, नाश और अवस्थित घटित नहीं होगा, तो वस्तु की सत्ता खरविषाणवत् होगी ही नहीं।18 412. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 750-751 की बृहद्वृत्ति का भावार्थ 413. आवश्यकनियुक्ति गाथा 63 414. तत्थ अभिंतरलद्धी नाम जत्थ से ठियस्स ओहिन्नाणं समुप्पणं, ततो ठाणाओ आरब्भ सो ओहिन्नाणी निरंतरसंबद्धं संज्ज्जं वा असंखेज्जं वा खित्तं ओहिणा जाणइ, पासइ एस अब्भिंतरलद्धी। - आवश्यकचर्णि भाग 1, पृ. 64 415. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 753 416. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 749 की बहवृत्ति 417. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 754-756 की बृहद्वत्ति 418. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 757-758 की बृहद्वृत्ति
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy