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[346] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन 3. संस्थान द्वार
क्षेत्र की दृष्टि से अवधिज्ञान के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट ऐसे तीन प्रकार बताये हैं। क्षेत्र की दृष्टि से प्रत्येक अवधिज्ञान में कुछ भिन्नता होती है। जितने क्षेत्र का अवधिज्ञान होता है, उस क्षेत्र का आकार प्रत्येक के लिए एक जैसा नहीं होता। जघन्य अवधिज्ञान का संस्थान
सूक्ष्म पनक की अवगाहना जितने जघन्य अवधिज्ञान का संस्थान स्तिबुक (पानी की बून्द) के समान गोल (वृत्त) होता है। उत्कृष्ट अवधिज्ञान का संस्थान
सभी अग्निकाय जीवों की सूची बनाकर घुमाने पर जो आकार बने वह उत्कृष्ट अवधिज्ञान का संस्थान होता है। यह पूर्णतः वृत्त रूप नहीं होता है, क्योंकि सभी अग्नि काय के जीवों की सूची बनाकर अवधिज्ञानी के शरीर के चारों ओर घुमाने पर जो आकार बने, वह आकार उत्कृष्ट अवधिज्ञानी का होता है, जो कि पूर्ण रूप से वृत्त रूप नहीं होता है। मध्यम अवधिज्ञान के संस्थान
मध्यम अवधिज्ञान के क्षेत्र के अनेक आकार होते हैं। इसलिए इसके अनेक संस्थान होते हैं।263 मध्यम अवधिज्ञान के संस्थान निम्न प्रकार से हैंनारकी के अवधिज्ञान का संस्थान
यह तप्र के आकार का होता है। 'नदी के प्रभाव से दूर से बहता हुआ काष्ठ समुदाय' तप्र कहलाता है 64 यह काष्ठ समुदाय लम्बा और त्रिकोण होता है। यह तप्र एक प्रकार की छोटी नाव (होड़ी) है, जो आगे की ओर से तो तीखी होती है, पीछे की ओर से चौड़ी होती है। इसी तरह नैरयिक के अवधिज्ञान का संस्थान भी लम्बा और त्रिकोण होता है अर्थात् नारक अवधिज्ञान से जो क्षेत्र देखते हैं, वह तिपाई जैसा होता है। ऊपर संकड़ा और नीचे चौड़ा, इस आकार से उनका अवधि होता है। वे नारक ऊपर विशेष अवलोकन नहीं कर सकते हैं। युवाचार्य मधुकरमुनि तप्र का अर्थ डोंगी अथवा लम्बी और त्रिकोनी नौका करते हैं-65 तथा भंवरलाल नाहटा ने पानी पर तिरने का त्रापा (तरापा) अर्थ किया है 66 भवनपति देव के अवधिज्ञान का संस्थान
यह पल्लक के आकार का होता है। पल्य (धान भरने का पात्र) का आकार ऊर्ध्व में लंबा और मुख की ओर सकड़ा होता है। लाढ़ देश में प्रसिद्ध धान भरने का एक पात्र विशेष जो ऊपर और नीचे की ओर लम्बा तथा ऊपर कुछ सिकुड़ा हुआ होता है।267 यह कोठी के आकार का होता है।68 पल्लक भवनपति के अवधिज्ञान का संस्थान होता है।
263. आवश्यकनियुक्ति गाथा 54, विशेषावश्यकभाष्य गाथा 704-705 264. तप्रो नाम काष्टसमुदायविशेषो यो नदीप्रवाहेण प्लाव्यमानो दूरादानीयते।
- आवश्यकनियुक्ति, गाथा 54, मलयगिरि वृत्ति, पृ. 68 265. युवाचार्य मधुकरमुनि, प्रज्ञापना सूत्र, भाग 3, पद 33, पृ. 182, 191 266. भंवरलाल नाहटा, 'अवधिज्ञान', स्व. मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ, पृ. 263 267. पल्लको नाम लाटदेशे धान्याधारविशेषः, स च ऊर्ध्वायत उपरि च किञ्चित्संक्षिप्तः।- आवश्यकनियुक्ति गाथा 54 वृत्ति, पृ.68 268. युवाचार्य मधुकरमुनि, प्रज्ञापना सूत्र, भाग 3, पद 33, पृ.191