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________________ पंचम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान [343] भवनपत्यादि में 25 योजन बताया है। यदि कोई जीव परभव से अवधिज्ञान लाता है तो जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट देशोन लोक तक का अवधिज्ञान ला सकता है एवं पूर्वभव से अवधिज्ञान लाये बिना भी मनुष्य और तिर्यंचपंचेन्द्रिय वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं। भवनपति, व्यंतर आदि देवों में भी पूर्वभव से अवधिज्ञान लाकर उत्पन्न हो सकते हैं, किन्तु इनका अवधि वैमानिकों जितना विशाल नहीं होने से देव भव के प्रथम समय में ही देवभव सम्बन्धी अवधि हो जाता है। अतः परभवजन्य (परभव से लाये) अवधि क्षेत्र की सीमा यहाँ नहीं रहती है। वैमानिक देवों में अवधिज्ञान का उत्कृष्ट प्रमाण आवश्यकनियुक्ति प्रज्ञापनासूत्र के तेंतीसवें (अवधिपद) और विशेषावश्यकभाष्य 52 में विमानवासी देवों के अवधिज्ञान का उत्कृष्ट प्रमाण बताया है, जो निम्न प्रकार से है। देवलोक क्षेत्र 1-2 देवलोक (सौधर्म-ईशान) पहली नरक पृथ्वी के चरमांत तक (प्रज्ञापना) 3-4 देवलोक (सनत्कुमार-माहेन्द्र) दूसरी नरक पृथ्वी के चरमांत तक 5-6 देवलोक (ब्रह्मलोक-लान्तक) तीसरी नरक पृथ्वी के चरमांत तक 7-8 देवलोक (महाशुक्र-सहस्रार) चौथी नरक पृथ्वी के चरमांत तक 9-12 देवलोक (आणत-प्राणत-आरण-अच्युत) पांचवीं नरक पृथ्वी के चरमांत तक 9 ग्रैवेयक की नीचे की त्रिक छठी नरक पृथ्वी के चरमांत तक 9 ग्रैवेयक की बीच की त्रिक छठी नरक पृथ्वी के चरमांत तक 9 ग्रैवेयक की ऊपर की त्रिक सातवीं नरक पृथ्वी के चरमांत तक 5 अनुत्तर विमान संभिन्न संपूर्ण लोक नाड़ी मतान्तर - राजेन्द्र अभिधान कोष अनुत्तर विमान का उत्कृष्ट अवधिक्षेत्र में त्रस नाड़ी बताया है। ऐसा मानने पर लोक के बहुत संख्यात भाग छूट जाते हैं। इससे कार्मण वर्गणा जानने में बाधा आयेगी प्रज्ञापना सूत्र के पन्द्रहवें पद की टीका में कार्मण वर्गणा मात्र अनुत्तर देव जानते हैं, ऐसा उल्लेख है। कार्मण वर्गणा को जानने वाला लोक के बहुत संख्यातवें भागों को जानता है। अतः अनुत्तर विमान देवों के अवधि का क्षेत्र संभिन्न संपूर्ण लोक नाड़ी कहना चाहिए, न कि त्रस नाड़ी। वैमानिक देव तिरछा जम्बूद्वीप आदि और लवण समुद्रादि असंख्यात द्वीप और समुद्रपर्यंत देखते हैं। ऊपर के देव तिरछा क्षेत्र बढ़ते-बढ़ते देखते हैं। ऊर्ध्व अर्थात् ऊंचा अपने विमान की ध्वजा तक देखते हैं। वैमानिक को छोड़कर शेष देवताओं के अवधिज्ञान का क्षेत्र प्रमाण सामान्य से इस प्रकार है। आधा सागरोपम से कम आयुष्यवाला देव संख्यात योजन तक और उससे अधिक आयुष्य वाले देव असंख्यात योजन तक उत्कृष्ट क्षेत्र देखते हैं अर्थात् देवों के अवधिज्ञान के क्षेत्र का विषय उनकी स्थिति के अनुसार है। मलयगिरि ने भी अवधिज्ञान के नीचे का प्रमाण तो आवश्यकनियुक्ति के अनुसार ही बताया है। तिरछा क्षेत्र का प्रमाण अकलंक जैसा ही असंख्य द्वीप-समुद्र माना है।54 प्रश्न - भवनपति देव के अवधिज्ञान का ऊँचा क्षेत्र पहले और दूसरे देवलोक तक का है और वैमानिक देव के अवधिज्ञान का ऊँचा क्षेत्र अपने विमान की ध्वजा पताका तक का ही है, तो इस 250. आवश्यकनियुक्ति गाथा 48-49 251. युवाचार्य मधुकरमुनि, प्रज्ञापनासूत्र भाग 3 252. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 695-697 253. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 52, विशेषावश्यकभाष्य गाथा 698-699 254. मलयगिरि, नंदीवृत्ति पृ. 87
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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