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प्रथम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहवृत्ति : एक परिचय [1] कोट्याचार्य के अनुसार - विषय और विषयी के निश्चित अर्थ का संबंध जोड़ना नियुक्ति है। जिनदासगणि का कथन है कि सूत्र में नियुक्ति अर्थ का नि!हण करने वाली व्याख्या नियुक्ति है।
मलधारी हेमचन्द्र ने नियुक्ति की परिभाषा देते हुए कहा है कि सूत्र और अर्थ का परस्पर सम्बन्ध स्थिर करना नियुक्ति है।"
सूत्र का व्याख्यान करने की अनुयोग पद्धति के तीन अंग होते हैं - 1. सूत्रार्थ निरूपण 2. नियुक्ति (सूत्र स्पर्शिक) 3. विस्तृत (समग्रता से) विवेचन। इस प्रकार नियुक्ति एक विशेष व्याख्या पद्धति है जो अनुयोग पद्धति का अंग है। 8 ।
निर्यक्ति की संख्या - निर्यक्तिकार आचार्य भद्रबाह ने दस नियुक्तियाँ लिखी है, जो इस प्रकार हैं - 1 आवश्यक नियुक्ति, 2 दशवैकालिक नियुक्ति, 3 उत्तराध्ययन नियुक्ति, 4 आचारांग नियुक्ति, 5 सूत्रकृतांग नियुक्ति, 6 दशाश्रुतस्कंध नियुक्ति, 7 बृहत्कल्प नियुक्ति, 8 व्यवहार नियुक्ति, 9 सूर्यप्रज्ञप्ति नियुक्ति और 10 ऋषिभाषित नियुक्ति। आचार्य भद्रबाहु ने अपनी सर्व-प्रथम कृति आवश्यकनियुक्ति में नियुक्ति रचना का संकल्प करते समय उपर्युक्त क्रम से ग्रंथों की नामावली दी है। उपर्युक्त दस नियुक्तियों में से अंतिम दो को छोड़ कर शेष वर्तमान में उपलब्ध है। आचार्य भद्रबाहुकृत दस नियुक्तियों का रचना-क्रम वही है जिस क्रम से उपर्युक्त नाम दिये गये हैं। इसकी सिद्धि सप्रमाण डॉ. सागरमल जैन ने शोधालेख 'नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन' में की है।
आवश्यक नियुक्ति सभी नियुक्तियों में प्रथम नियुक्ति है, अतः यह नियुक्ति सामग्री, शैली आदि सभी दृष्टियों से अधिक उपयोगी व महत्त्वपूर्ण है। आवश्यक नियुक्ति में अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई है। आवश्यक नियुक्ति के पश्चात् की नियुक्तियों में उन विषयों की चर्चाएं न कर आवश्यक नियुक्ति को देखने का संकेत किया गया है। अतः अन्य नियुक्तियों को अच्छी तरह से समझने के लिए पहले आवश्यक नियुक्ति का ज्ञान आवश्यक है। आवश्यक नियुक्ति पर जिनभद्रगणि, जिनदासगणि, हरिभद्र, कोट्याचार्य, मलयगिरि, मलधारी हेमचन्द्र, माणिक्यशेखर आदि आचार्यों ने विविध व्याख्याएं लिखी हैं।
नियुक्ति में व्याख्या विधि - नियुक्ति की व्याख्यान शैली का वर्णन करते हुए स्वयं आचार्य ने कहा है कि "आहरणहेउकारणपदनिवहमिणं समासेणं 49 अर्थात् इसमें दृष्टांत-पद, हेतु-पद तथा कारण-पद का आश्रय लेकर संक्षिप्त निरूपण करना है। अन्यत्र आचार्य ने कहा है - जिणवयणं सिद्धं चेव भण्णई कत्थवी उदाहरणं। आसज्ज उ सोयारं हेऊवि कहंचिय भणेजा।
अर्थात् भगवान् ने जो उपदेश दिया वह तो सिद्ध ही है। उसे अनुमान द्वारा सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है, तथापि श्रोता की दृष्टि को लक्ष्य में रखकर कहीं आवश्यक प्रतीत हो तो वहाँ दृष्टान्त का उपयोग करना चाहिए और श्रोता की योग्यता के अनुसार हेतु देकर भी समझाना चाहिए। भद्रबाह ने इस नियम का पालन सभी नियुक्तियों में किया। 45. नियोजनं निश्चितं सम्बन्धनं तयो विषयविषयिणोनियुक्तिरभिधीयते। - कोट्याचार्य विशेषावश्यकभाष्य वृत्ति, पृ. 276 46. सुत्तनिजुत्त-अत्थनिजूहणं निज्जुत्ती। आवश्यकचूर्णि भाग 1. पृ. 92 47. तयोः सूत्रार्थयोः परस्परं निर्योजनम्-अस्य सूत्रस्य अयमर्थः इत्येवं सम्बन्धनं नियुक्तिः।
-विशेषावश्यकभाष्य की बृहद्वृत्ति गाथा 1071 48. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 566
49. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 84-85 49. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 86
50. दशवैकालिक नियुक्ति, गाथा 49