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विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन प्रश्न - अवधिज्ञानी मनोवर्गणाओं को जानते हैं तो क्या दूसरों के मन की बात को जान सकते
उत्तर - भगवती सूत्र शतक 5 उद्देशक 4 के अनुसार क्षेत्र से लोक का संख्यातवाँ भाग और काल से पल्योपम का संख्यातवां भाग जानने वाले अवधिज्ञानी को भी दूसरों के मन की बात जानने की लब्धि हो जाती है। उस मनोद्रव्य-वर्गणा की लब्धि से वे दूसरों के मन की बात जान लेते हैं। जो मन की बात को जाने, उसे मनोद्रव्य-वर्गणा-लब्धि कहते हैं और यह विशेष अवधिज्ञान वालों को ही होती है, मनोवर्गणा लब्धि मात्र मनुष्य और वैमानिक को ही होती है। देवों में तो सम्यग्दृष्टि वैमानिक के अतिरिक्त शेष को नहीं होती।
सागरोपम की स्थिति वाले असुर को मनोवर्गणा लब्धि नहीं होती है, क्योंकि प्रज्ञापनासूत्र के चौंतीसवें पद के अनुसार वे आहार के पुद्गलों को भी जान और देख नहीं सकते हैं तो मनोवगर्णा की लब्धि कैसे हो सकती है?
उपर्युक्त आठ वर्गणा ही जीव के ग्रहण करने योग्य होती है। कर्मग्रंथ भाग 5 में आठ प्रकार की वर्गणाओं का ही वर्णन मिलता है, लेकिन आवश्यकनियुक्ति 1 और विशेषावश्यकभाष्य182 पंचसंग्रह183 गोम्मटसार184 में इन आठ वर्गणाओं से ऊपर की वर्गणाओं का भी उल्लेख प्राप्त होता है।
आवश्यकनियुक्ति के अनुसार ही विशेषावश्यकभाष्य में भी कार्मण वर्गणा की अग्रहण वर्गणा के ऊपर ध्रुव, अध्रुव, शून्य और अशून्य अनंती वर्गणाएं हैं। इसके बाद चार ध्रुवान्तर (प्रथम, द्वितीय, तृतीय
और चतुर्थ) और चार शरीर (तनु) वर्गणाएं (औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तैजस) एवं इनके ऊपर मिश्रस्कन्ध वर्गणा और अचित्तमहास्कंध वर्गणा है। इस प्रकार जीव के अग्रहण योग्य 14 वर्गणाएं हैं। इस प्रकार कुल वर्गणाएं 22 (जीव के ग्रहण योग्य 8 और जीव के अग्रहण योग्य 14) होती हैं।
पंचसंग्रह के अनुसार - कार्मण वर्गणा के पश्चात् यथाक्रम से ध्रुवाचित्त, अध्रुवाचित्त, शून्य वर्गणा, प्रत्येकशरीर, ध्रुवशून्य, बादरनिगोद, ध्रुवशून्य, सूक्ष्मनिगोद, ध्रुवशून्य, महास्कंधवर्गणा हैं। ये सभी वर्गणाएं अपने अपने सार्थक नाम वाली हैं। इस प्रकार पूर्व में औदारिक आदि आठ वर्गणाएं और ध्रुवाचित्त आदि दस वर्गणाएं इस प्रकार कुल अठारह वर्गणाओं का वर्णन पंचसंग्रह में मिलता है।85
गोम्मटसार के अनुसार - गोम्मटसार में अणुवर्गणा, संख्याताणुवर्गणा, असंख्याताणुवर्गणा, अनंताणुवर्गणा, आहारवर्गणा, अग्राह्यवर्गणा, तैजसशरीरवर्गणा, अग्राह्यवर्गणा, भाषावर्गणा, अग्राह्यवर्गणा, मनोवर्गणा, अग्राह्यवर्गणा, कार्मणवर्गणा, ध्रुववर्गणा, सान्तरनिरन्तर वर्गणा, शून्यवर्गणा, प्रत्येकशरीर वर्गणा, ध्रुवशून्य वर्गणा, बादरनिगोद वर्गणा, शून्यवर्गणा, सूक्ष्मनिगोद वर्गणा, नभोवर्गणा, महास्कंधवर्गणा। इन 23 प्रकार की वर्गणाओं का वर्णन गोम्मटसार में प्राप्त होता है।186
गोम्मटसार में उपर्युक्त जो 23 प्रकार की वर्गणा बताई है उसमें औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, भाषा, श्वासोच्छ्वास, मन और कार्मण इन आठ वर्गणाओं में से पाँच वर्गणाएं मानी ही हैं अर्थात् औदारिक, वैक्रिय और आहारक इन तीन वर्गणाओं के स्थान पर एक आहार वर्गणा ली गई है
और श्वासोच्छ्वास वर्गणा को नहीं लिया गया है। इस प्रकार आठ की अपेक्षा पांच ही वर्गणा गिनी है। कर्मप्रकृति 87 में भी गोम्मटसार के अनुसार ही वर्णन मिलता है। 181. आवश्यकनियुक्ति गाथा 40
182. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 638-642 183. पंचसंग्रह (बंधकरण-प्ररूपणा अधिकार) भाग 6, गाथा 16 184. गोम्मटसार जीवकांड, गाथा 594 185. कम्मोवरिं धुवेयर सुंता पत्तेय सुन्न बादरगा। सुन्ना सुहमे सुन्ना महक्खंधो सगुणनामाओ । - पंचसंग्रह, भाग 6, गाथा 16 186. गोम्मटसार (जीवकांड) भाग 2, गाथा 594 पृ. 822
187. कर्मप्रकृति बंधकरण 18-20