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पंचम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान
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वैक्रिय अग्रहण योग्य उत्कृष्ट वर्गणाओं के ऊपर प्रत्येक प्रदेश की वृद्धि होते हुए वैक्रिय के लायक द्रव्य से बनी हुई होने से वैक्रिय शरीर के ग्रहण योग्य जघन्य वर्गणा होती है। एक-एक प्रदेश की वृद्धि से वैक्रिय के ग्रहण योग्य उत्कृष्ट वर्गणा होती है। वैक्रिय के ग्रहण योग्य उत्कृष्ट वर्गणा में एक-एक प्रदेश की वृद्धि से जघन्य तथा उत्कृष्ट वैक्रिय के अग्रहण योग्य वर्गणा होती है। यह वर्गणा बहुत द्रव्य से और सूक्ष्म परिणामी होने से वैक्रिय के ग्रहण योग्य नहीं होती है।
वैक्रिय के अग्रहण योग्य उत्कृष्ट वर्गणाओं के ऊपर एक-एक प्रदेश की वृद्धि होती है जिससे यह वर्गणा (ऊपर की अपेक्षा) अल्प द्रव्य से बनी हुई और स्थूल परिणाम वाली होने से आहारक शरीर के अग्रहण योग्य अनंती वर्गणाएं हैं। इन अग्रहण योग्य वर्गणाओं के ऊपर एक-एक प्रदेश की वृद्धि से आहारक शरीर के ग्रहण योग्य अनंती वर्गणाएं है। इन ग्रहण योग्य वर्गणाओं से ऊपर एकएक प्रदेश की वृद्धि होते हुए बहुत से द्रव्य से बनी हुई अति सूक्ष्म परिणामवाली होने से आहारक शरीर के अग्रहण योग्य अनंती वर्गणाएं हैं। अतः वैक्रिय और आहारक शरीर की भी वर्गणाएं तीन प्रकार की हैं - अग्रहण वर्गणा, ग्रहण वर्गणा और अग्रहण वर्गणा।।
इसी प्रकार तैजस, भाषा, श्वासोच्छ्वास, मन और कार्मण वर्गणाओं के भी अयोग्य, योग्य और पुनः अयोग्य वर्गणा रूप तीन-तीन भेद समझने चाहिए। ये सभी वर्गणाएं अनंत होती है।75 इस प्रकार आठ वर्गणाओं को अयोग्य, योग्य और पुनः अयोग्य इस प्रकार तीन भेद से गुणा करने पर 24 भेद होते हैं।
आठ ग्रहण योग्य वर्गणा और आठ अग्रहण योग्य वर्गणा होती है। इन सोलह वर्गणाओं में प्रत्येक के जघन्य और उत्कृष्ट दो मुख्य विकल्प होते हैं और जघन्य तथा उत्कृष्ट को छोड़कर मध्यम के अनंत विकल्प होते हैं। ग्रहण वर्गणा के जघन्य से उसका उत्कृष्ट अनंतवें भाग अधिक और अग्रहण वर्गणा के जघन्य से उसका उत्कृष्ट अनन्तगुणा अधिक होता है।76 द्रव्य वर्गणा का परिणाम
जैसे रूई, लकड़ी मिट्टी, पत्थर और लोहे को अमुक (निश्चित) परिमाण में लेने पर भी रूई से लकड़ी का, लकड़ी से मिट्टी, मिट्टी से पत्थर और पत्थर से लोहे का आकार क्रमशः छोटा होता जाता है। क्रम से आकार छोटा होने पर भी ये वस्तुएं उत्तरोत्तर ठोस और वजनी होती जाती हैं अर्थात्
आगे-आगे की वर्गणाओं में प्रदेशों की संख्या बढ़ती जाती है, किंतु उनका आकार सूक्ष्म-सूक्ष्मतर होता जाता है।
वैसे ही औदारिक वर्गणा से वैक्रिय वर्गणा में अनंतगुणा परमाणु अधिक होते हैं। इस प्रकार आहारक, तैजस, भाषा, श्वासोच्छ्वास, मन और कार्मण वर्गणाओं में अनुक्रम से अनंत-अनंतगुणा परमाणु होते हैं। यह क्रम द्रव्य की अपेक्षा से है। क्षेत्र की अपेक्षा से इसके विपरीत होता है। कार्मण वर्गणा का अवगाहना क्षेत्र सबसे कम, उसकी अपेक्षा मन वर्गणा का अवगाहन क्षेत्र असंख्यात गुणा अर्थात् जितने आकाश प्रदेशों को एक कार्मण वर्गणा अवगाहित करके रहती है उससे असंख्यात गुणा आकाश प्रदेशों पर मन प्रयोग्य एक वर्गणा रहती है। इसी प्रकार मन से श्वासोच्छ्वास, इससे भाषा, इससे तैजस यावत् औदारिक वर्गणाओं का अवगाहन क्षेत्र असंख्यात-असंख्यात गुणा अधिक-अधिक है।180 175. विशेषावष्यकभाष्य, गाथा 633-636
176. कर्मग्रंथ भाग 5, पृ. 211 177. कर्मग्रन्थ भाग 5 पृ. 212 178. अह दव्य वग्गणाणं कमो - पंचसंग्रह (बंधकरण प्ररूपणा अधिकार) भाग 6, गाथा 15 पृ. 38 179. 'विवज्जासओ रिवत्ते' पंचसंग्रह, भाग 6, गाथा 15 पृ. 38 180. पंचसंग्रह, भाग 6, गाथा 15 पृ. 48