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पंचम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान
[325] चरम सीमा तक पहुंच जाता है। 65 परमावधिज्ञानी में परमाणु, कार्मण शरीर और अगुरूलघु द्रव्यों को देखने की शक्ति होती है।
उपर्युक्त द्रव्यों को जानने वाला अवधिज्ञानी अवधिज्ञानावरण कर्म के उदय के कारण पतित होता है तब यही कहा जाता है कि गुरुलघु आदि स्वरूप को प्राप्त हुए द्रव्यों से गिर जाता है। यह न्याय प्रतिपाति अवधिज्ञान के लिए हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं मानना चाहिए कि वह गिरता ही है। अवधिज्ञान गिरने वाला है तो प्रारंभ में जो द्रव्य देखा था, उस द्रव्य को ही अंत में देखकर गिर जाता है।67
प्रश्न - द्रव्य से अवधिज्ञानी जघन्य से अनन्त रूपी द्रव्य (अनन्त-प्रदेशी स्कंध) जानते हैं और उत्कृष्ट से सर्व रूपी द्रव्य को जानते हैं। सर्वरूपी द्रव्य में परमाणु भी शामिल है। यहाँ जघन्य में परमाणु नहीं लेकर अनन्त-प्रदेशी स्कंध लिये हैं, सो इसका क्या कारण है?
उत्तर - यहाँ जघन्य द्रव्य की अपेक्षा नहीं समझ कर अवधिज्ञान की अपेक्षा समझना अर्थात् छोटे से छोटे अवधिज्ञानी की यह छोटी शक्ति बताई है, फिर अवधिज्ञान जितना अधिक होता है उतनी ही इससे सूक्ष्म पुद्गल देखने की शक्ति बढ़ती है।
उपर्युक्त कथनानुसार अवधिज्ञानी के रूपी द्रव्य का विषय औदारिक आदि वर्गणाएं हैं। इस प्रसंग के निमित्त से आवश्यकनियुक्ति और विशेषावश्यकभाष्य में वर्गणाओं के स्वरूप का वर्णन किया गया है, जो निम्न प्रकार से हैं - वर्गणाओं का स्वरुप
परमाणु से लेकर स्कंधरूप पुद्गलों से सम्पूर्ण लोक भरा हुआ है। यह पुद्गल अनेक भागों में विभाजित है। इन अनेक भागों में समान जाति के पुद्गलों के समूह को वर्गणा कहते हैं। समूह, वर्ग और राशि इसके पर्याय हैं। 68
वर्गणा का स्वरूप समझाने के लिए भाष्यकार ने कुविकर्ण (कुचिकर्ण) का उदाहरण दिया है - इस भरत क्षेत्र के मगध देश में बहुत गायों के मण्डल का स्वामी कुविकर्ण (कुचिकर्ण) नामक गृहपति (सेठ) रहता था। कुविकर्ण ने गायों की संख्या अधिक होने से हजार, दस हजार आदि संख्या में गायों के समूह बनाये। उन समूहों का पालन और संरक्षण करने के लिए पृथक-पृथक् ग्वालों को सौंप दिया। वे ग्वाले उन गायों को एक ही स्थान पर एक साथ चराने के लिए ले जाते थे। जिससे बहुत सी बार एक समूह की गायें दूसरे समूह में मिल जाती थी। जिससे ग्वाले अपने-अपने समूह की गायों को पहचान नहीं पाने के कारण 'यह गाय मेरी है, तुम्हारी नहीं है' इस प्रकार से प्रतिदिन झगड़ा करते थे। कुविकर्ण ने ग्वालों के झगड़े को मिटाने के लिए सफेद-काली-नीली-लाल-चितकबरी आदि भिन्न-भिन्न वर्ण वाली गायों के भिन्न-भिन्न समूह बनाकर ग्वालों को पुनः सौंप दिया। इससे ग्वालों का झगड़ा समाप्त हो गया। इसी प्रकार तीर्थकर भगवान् गृहपति, शिष्य ग्वाले और गायों के समूह के समान पुद्गलास्तिकाय है। भगवान् ने शिष्यों पर अनुग्रह कर पुद्गलास्तिकाय की सही पहचान कराने के लिए पुद्गलवर्गणाओं के भेद कर दिये हैं। इसी प्रमाण से सम्पूर्ण लोक पुद्गलों से भरा हुआ है, उसमें सजातीय पुद्गल परमाणु के समूह को औदारिक आदि वर्गणा कहते हैं।169 165. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 672
166. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 41-43 167. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 627-629 168. सजातीयवस्तुसमुदायो वर्गणा, समूहो वर्ग, राशि: इति पर्यायाः।-मलधारी हेमचन्द्र, विशे० भा० बृहद्वृत्ति, गाथा 633, पृ. 278 169. आवश्यकनियुक्ति गाथा 39, विशेषावश्यकभाष्य गाथा 632 की बृहद्वृत्ति