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________________ पंचम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान [323] द्रव्य की वृद्धि अवस्थित क्षेत्र एवं काल में तथाविध शुभ अध्यवसाय से क्षयोपशम की वृद्धि होती है, तो ज्ञेय द्रव्य बढ़ता है, लेकिन क्षेत्र और काल अवस्थित रहते हैं तथा द्रव्य की वृद्धि होती है तो पर्याय की वृद्धि अवश्य होती है, क्योंकि प्रत्येक द्रव्य की अनंत पर्याय हैं। जघन्य से भी एक एक द्रव्य के पर्याय चतुष्ट्य को अवधिज्ञानी जानता है। पर्याय की वृद्धि पर्याय की वृद्धि होने से द्रव्य की वृद्धि होती भी है अथवा नहीं भी होती है कारण कि अवस्थित द्रव्य में तथाविध क्षयोपशम की वृद्धि होने से पर्याय ही बढ़ती है। 50 ऐसा ही वर्णन हरिभद्र और मलयगिरि ने किया भी है। 51 मतान्तर जिनभद्रगणि के अनुसार पर्याय वृद्धि में द्रव्यादि की वृद्धि भजना से होती है लेकिन अकलंक के अनुसार पर्याय की वृद्धि में द्रव्य की भी वृद्धि नियम से होती है। 52 इसका समर्थन धवलाटीकाकार ने भी किया है।53 उपर्युक्त आधार से ऐसा कह सकते हैं कि काल आदि की स्थूलता-सूक्ष्मता की अपेक्षा से वृद्धि होने पर जिसकी वृद्धि हो रही है उससे पूर्व वाले की वृद्धि भजना से होती है और पश्चात् वाले की वृद्धि नियम से होती है। जिनभद्रगणि ने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की सूक्ष्मता का गणित की भाषा में निरूपण किया है -काल सूक्ष्म है, काल से क्षेत्र असंख्यात गुणा सूक्ष्म है, क्षेत्र से द्रव्य अनंतगुणा सूक्ष्म है और द्रव्य से पर्याय संख्यातगुणा अथवा असंख्यातगुणा सूक्ष्म है।154 जैसे कि एक आवलिका में चौथे असंख्यात जितने समय होते हैं और एक सैकण्ड में 5325 आवलिकाएं होती हैं। इतना सूक्ष्म काल भी क्षेत्र के सामने बादर है। द्रव्य और भाव (पर्याय) तो उससे भी सूक्ष्म है। सूक्ष्म का अर्थ उपर्युक्त प्रसंग में सूक्ष्मता का सम्बन्ध अर्थ अवगाहना से नहीं है, क्योंकि आकाश का एक प्रदेश, एक परमाणु और एक पर्याय (पर्यव) ये सभी अवगाहना में समान हैं। इसलिए यहाँ सूक्ष्म का अर्थ - 'व्याघात न पाने वाला और व्याघात नहीं देने वाला' ऐसा करना चाहिए। एक आकाश प्रदेश पर परमाणु से लेकर अनंत प्रदेशी स्कंध द्रव्य परस्पर व्याघात पहुँचाये बिना रहते हैं और परमाणु से लेकर अनंत प्रदेशी स्कंध में अनंत-अनंत पर्याय परस्पर व्याघात पहुँचाये बिना रहती है। अवधिज्ञानी के जानने योग्य पुद्गल आवश्यकनियुक्ति और विशेषावश्यकभाष्य155 के अनुसार जब जीव को अवधिज्ञान होता है तो सर्वप्रथम द्रव्य रूप में तैजस और भाषा वर्गणाओं के बीच में रही हुई अयोग्य वर्गणाओं को अर्थात् जो द्रव्य तैजस और भाषा के योग्य नहीं ऐसे गुरुलघु और अगुरुलघु पर्याययुक्त द्रव्य को वह अवधिज्ञानी जानता है अर्थात् गुरुलघु द्रव्य (तैजस वर्गणा के समीप के द्रव्य) से प्रारंभ हुआ अवधिज्ञान बढ़ता-बढ़ता नीचे के औदारिक आदि गुरुलघु द्रव्यों को देखकर विशुद्ध होता है। इसमें 150. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 618-619 151. मलयगिरि, नंदीवृत्ति पृ. 95 152. भाववृद्धावपि द्रव्यवृद्धिर्नियता क्षेत्रकालवृद्धिर्भाज्या स्याद्वा न वेति। - तत्त्वार्थराजवार्तिक 1.22 पृ.57 153. पज्यवुड्डीए वि णियमा दव्ववुड्डी दव्ववदिरित्तपज्जायाभावादो। - षट्खण्डागम, पृ.13, सूत्र 5.5.59 पृ. 309 154. कालो खेत्तं दव्वं भावो य जहुत्तरं सुहुमभेया। थोवा-संखा-णता-संखा य जमोहिविसयम्मि। - विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 623 155. आवश्यकनियुक्ति गाथा 37. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 623
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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