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________________ पंचम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान [319] उत्तर - यहाँ पर अवधिज्ञान का जितना विषय क्षेत्र कहा है, वह केवल उसके सामर्थ्य मात्र को बताने के लिए कहा है। इतने क्षेत्र में जो देखने योग्य रूपी द्रव्य हैं उन्हीं को देखता है। अलोक में रूपी द्रव्य नहीं होने से अवधिज्ञानी अलोक में नहीं देखता है लेकिन जैसे-जैसे अवधिज्ञान क्षेत्र का लोक के बाहर का बढ़ता है तो इससे लोक में उसकी सूक्ष्म से सूक्ष्मतर रूपी पुद्गलों को देखने की शक्ति बढ़ती है और बढ़ते-बढ़ते परमावधि ज्ञानी तो परमाणु को भी देख लेता है और बढ़ते-बढ़ते जब जीव को चरम सीमा सर्वोत्कृष्ट अवधिज्ञान (परमावधि) हो जाता है। सर्वोत्कृष्ट अवधिज्ञान होने पर जीव को अंतर्मुहूर्त में केवलज्ञान की प्राप्ति हो जाती हैं। यह इसका वास्तविक फल है।125 इसी बात का समर्थन मलयगिरि126 ने भी किया है। षटखण्डागम में भी ऐसा ही उल्लेख प्राप्त होता है, किन्तु अवधि का उत्कृष्ट क्षेत्र सर्वावधि जितना है, क्योंकि परमावधि के बाद षट्खण्डागम में सर्वावधि को भी स्वीकार किया गया है। लेकिन सर्वावधि का भेद आवश्यकनियुक्ति, विशेषावष्यकभाष्य और नंदीसूत्र आदि में प्राप्त नहीं होता है। अकलंक ने सर्वावधि का क्षेत्र प्रमाण परमावधि के उत्कृष्ट क्षेत्र से अनंतगुणा बताकर षट्खण्डागम का समर्थन किया है।128 जिनभद्रगणि ने इसी प्रसंग पर क्षेत्र की अपेक्षा से काल का वर्णन भी किया है कि इतना क्षेत्र देखने वाला अवधिज्ञान इतने भूत-भविष्य रूप काल को जानता है। ऐसा ही वर्णन नंदीसूत्र, मलयगिरि आदि ने भी किया है, साथ ही दिगम्बर साहित्य में भी लगभग ऐसा ही उल्लेख प्राप्त होता है। फिर भी दोनों परम्पराओं में कुछ मतभेद है, उसको निम्न चार्ट के द्वारा दर्शाया गया है। निम्न वर्णन आवश्यकनियुक्ति 30 और षट्खण्डागम31 के आधार पर दिया गया है। क्र. क्षेत्र श्वेताम्बर परम्परा में काल दिगम्बर परम्परा में काल 1. अंगुल के असंख्यातवें भाग आवलिका का असंख्यातवें भाग पर्यन्त देखता है समान 2. अंगुल के संख्यातवें भाग आवलिका का संख्यातवें भाग पर्यन्त देखता है समान 3. अंगुल प्रमाण क्षेत्र तक आवलिका के अन्तर्भाग पर्यन्त देखता है समान 4. अंगुल पृथक्त्व(2-9)क्षेत्रतक आवलिका पर्यन्त देखता है समान 5. हाथ प्रमाण क्षेत्र तक अन्तर्मुहूर्त प्रमाण देखता है पृथक्त्व आवलिका (7-8आवलिका) 6. गाऊ प्रमाण क्षेत्र तक दिवस अन्तर्भाव पर्यन्त देखता है अन्तर्मुहूर्त (साधिक उच्छ्वास) 7. योजन प्रमाण क्षेत्र तक दिवस पृथक्त्व पर्यन्त देखता है भिन्नमुहूर्त (एकसमय कम मुहूर्त) 8. 25 योजन क्षेत्र तक पक्षान्त भाग तक देखता है दिवसअंतो(एकदिन में कुछ कम 9. भरत क्षेत्र तक अर्द्धमास तक देखता है समान 10. जंबूद्वीप तक एक मास अधिक देखता है समान 11. मनुष्यलोक तक एक वर्ष पर्यन्त देखता है समान 12. रुचकद्वीप तक पृथक्त्व वर्ष पर्यन्त देखता है समान 13. संख्यातद्वीप तक संख्यात काल पर्यन्त देखता है समान 14. असंख्यातद्वीप तक असंख्यात काल पर्यन्त देखता है समान 124. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 598-601, 603-604 125. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 605-606 126. मलयगिरि, नंदीवृत्ति, पृ. 93 127. षट्खण्डागम, पृ. 13, सूत्र 5.5.59 गाथा 15 पृ. 324 128.सर्वावधिरूच्यते-असंख्येयानामसंख्येय-भेदत्वादुत्कृष्टपरमावधिक्षेत्रमसंख्येयलोकगुणितमस्यक्षेत्र।-तत्त्वार्थराजवार्तिक, 1.22 पृ. 57 129. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 608 से 614 130. आवश्यकनियुक्ति गाथा 32 से 35, विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 608 से 610, 615 131. षट्खण्डागम, पु. 13, सूत्र 5.5.59 गाथा 4 से 7
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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