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[314] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन 2. क्षेत्र परिमाण निक्षेप
अवधिज्ञान का विषय जितने क्षेत्र में होता है अर्थात् जितने क्षेत्र में रहे हुए रूपी पदार्थों को अवधिज्ञानी जानता है वह अवधिज्ञान का क्षेत्र परिमाण कहलाता है। इसके तीन प्रकार हैं - जघन्य, उत्कृष्ट और मध्यम। अवधि का सबसे कम न्यूनतम परिमाण जघन्य अवधि, सर्वोत्कृष्ट परिमाण को उत्कृष्ट अवधि और दोनों के बीच में जो भी परिमाण होता, वह मध्यम अवधि कहलाता है।
अवधि का जघन्य क्षेत्र परिमाण ___नंदीसूत्र, आवश्यकनियुक्ति और विशेषावश्यकभाष्य के अनुसार तीन समय के आहारक सूक्ष्म पनक जीव का जितना शरीर (अवगाहना) होता है उतना ही अवधिज्ञान का विषयभूत जघन्य क्षेत्र परिमाण होता है।11 षट्खण्डागम में सूक्ष्म निगोद लब्धि अपर्याप्त जीव के आधार पर कथन किया गया है।12 ___ जैन आगमों में 'पनक' शब्द प्रमुख रूप से निगोद (लीलन-फूलन) के लिए प्रयुक्त होता है। निगोद का अर्थ होता है एक शरीर में अनंत जीव होना अर्थात् अनंत जीवों का पिण्ड निगोद कहलाता है। निगोद का यह शरीर अत्यंत सूक्ष्म होता है जिसे हम चर्मचक्षु से नहीं देख सकते हैं। निगोद के जीव दो प्रकार के होते हैं - सूक्ष्म और बादर। विशेषावश्यकभाष्य गाथा 588 में 'सुहुमस्स पणगजीवस्स' से सूक्ष्म निगोद के जीव का ग्रहण किया गया है, बादर का नहीं। निगोद के जीव एक मुहूर्त में श्वेतांबर 13 मान्यता से 65536 भव और दिगम्बर14 मान्यता से अंतर्मुहूर्त में 66336 भव पांच जातियों के लब्धि अपर्याप्ता के करते हैं।
मलधारी हेमचन्द्र की बृहद्ववृत्ति के अनुसार एक हजार योजन की लम्बाई वाला मत्स्य मरकर स्व-शरीर के एक देश में उत्पन्न होने के लिए प्रथम समय में हजार योजन वाला मत्स्य जाड़ाई का संकोच कर अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण मोटा (जाड़ा) और लंबा होता है तो स्वयं के शरीर जितना प्रतर सामर्थ्य से करता है। दूसरे समय में उस प्रतर को भी संकुचित कर वह मत्स्य शरीर प्रमाण चौड़ाई वाले आत्मप्रदेशों की सूची (श्रेणी) बनाता है। उस सूची की मोटाई-चौड़ाई अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण होती है। इसके बाद तीसरे समय में सूची को भी संक्षेप कर के अंगुल के अंसख्यातवें भाग जितनी अवगाहना बनाकर वर्तमान भव का मत्स्यायु क्षय होने से और नये भव (पनक) का आयुष्य उदय होने से अविग्रह गति से उस मत्स्य के शरीर के किसी एक देश में सूक्ष्म पनक के रूप में उत्पन्न होता है। उत्पत्ति के तीसरे समय में पनक के शरीर का जितना प्रमाण होता है उतना प्रमाण अवधिज्ञान का जघन्य क्षेत्र होता है। क्षेत्र में रहे हुए रूपी पदार्थ जघन्य अवधिज्ञानी के विषय बनते हैं। यह प्रमाण मुनिवृंदों द्वारा कथित है। 15 ऐसा ही उल्लेख हरिभद्र और मलयगिरि ने नंदीवृत्ति में किया है।16 स्पष्टीकरण
यहाँ 1000 योजन का मत्स्य लेने का कारण यह है कि अधिक बड़े शरीर (अवगाहना) वाले मत्स्य को तीन समय में आत्मप्रदेशों को संकोच करने के लिए तीव्र प्रयत्न करना पड़ता है। स्व-शरीर
111. जावइया तिसमयाहारगस्स सुहुमस्स पणगजीवस्स। ओगाहणा जहण्णा ओही खेत्तं जहण्णं तु।
- आवश्यकनियुक्ति गाथा 30, नंदीसूत्र, पृ. 35, विशेषावश्यकभाष्य गाथा 588 112. षटखण्डागम, पृ.13, सूत्र 5.5.59.3 पृ. 301 113. पं. सुखलाल, कर्मग्रन्थ, भाग 5, पृ.119
114. गोम्मटसार (जीवकांड) भाग 1, गाथा 123 115. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 589-591
116. हरिभद्रीयावृत्ति पृ. 26, मलयगिरि पृ. 91