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[312] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहवृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन निक्षेप का स्वरूप
शब्दों का अर्थों में और अथों का शब्दों में आरोप करना, अर्थात् जो किसी एक निश्चय या निर्णय में स्थापित करता है उसे निक्षेप कहते हैं।106 निक्षेप का पर्यायवाची शब्द न्यास है। तत्त्वार्थसूत्र में इस शब्द का प्रयोग हुआ है। 07 अनुयोगद्वार की टीका में कहा है कि निक्षेपपूर्वक अर्थ का निरूपण करने से उसमें स्पष्टता आती है, इसलिए अर्थ की स्पष्टता निक्षेप का प्रकट फल है।08 1. 'अवधि' शब्द का निक्षेप
अवधि निक्षेप की जिनभद्रगणि ने नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव इन सात प्रकारों से समझाया है।
(1) नाम अवधि - व्यवहार की सुविधा के लिए वस्तु को अपनी इच्छा के अनुसार जो संज्ञा प्रदान की जाती है, वह नाम निक्षेप है। जैसे लोक व्यवहार में मर्यादा (सीमा) को अवधि कहते हैं वैसे ही कोई जीवादि पदार्थ को अवधि नाम देने से वह मात्र नाम से अवधि कहलाता है अथवा अवधि ऐसे अक्षरों की पंक्ति रूप संज्ञा का नाम है अथवा यह अवधिज्ञान की वचन रूप स्वपर्याय है। इस नाम निक्षेप का सम्बन्ध वस्तु के अवधि नाम से ही है, गुण-अवगुण से नहीं और यह आयुपर्यन्त अथवा वस्तु की उसी रूप में स्थिति रहे-वहाँ तक रहता है। नाम निक्षेप में जो उसका मूल नाम है उसी से उसे पुकारा जाता है, किन्तु उस नाम के अन्य पर्यायवाची शब्दों से उसका कथन नहीं हो सकता है।
(2) स्थापना अवधि - किसी मूल वस्तु का, प्रतिकृति, मर्ति अथवा चित्र में आरोप करना स्थापना निक्षेप है अर्थात् जो अर्थ तद्रूप नहीं है, उसे तद्प मान लेना स्थापना निक्षेप है। जैसे चावल आदि में किसी वस्तु आदि का निक्षेप किया जाता है वैसे ही किसी वस्तु में अवधि की स्थापना करना स्थापना अवधि है अथवा अवधिज्ञान के विषयभूत पृथ्वी, पर्वत आदि द्रव्य, भरतादि क्षेत्र और स्वामीपने का आधारभूत साधु आदि का आकार विशेष स्थापना अवधि है।
(3) द्रव्य अवधि - गुण के उस आधार (पात्र) को द्रव्य कहते हैं कि जिसमें भविष्य में गुण उत्पन्न होने वाला हो, अथवा भूतकाल में उत्पन्न होकर नष्ट हो चुका हो अर्थात् अतीत-व्यवस्था, भविष्यत् अवस्था और अनुयोग दशा ये तीनों विवक्षित क्रिया में परिणत नहीं होते हैं, इसलिए इन्हें द्रव्य निक्षेप कहते हैं। इस निक्षेप में किसी समय भूतकालीन स्थिति का वर्तमान काल में प्रयोग किया जाता है तो किसी समय भविष्यकालीन स्थिति का वर्तमान काल में प्रयोग होता है। इसके दो प्रकार होते हैं - 1. आगमतः और 2. नो आगमतः।
1. आगमतः - अवधिज्ञानी पदार्थ को जानता है लेकिन उस पदार्थ में उसका उपयोग नहीं हो, तो यह आगमतः अवधि द्रव्य है।
2. नो आगमतः - जिसमें अवधि की क्रिया नहीं हो रही है, वह नो आगमतः अवधि द्रव्य है। इसके दो भेद हैं - ज्ञशरीर द्रव्यावधि और भव्यशरीर द्रव्यावधि। अवधिज्ञानी का मुर्दा शरीर-नोआगम ज्ञायक शरीर द्रव्य है अथवा जिसमें भविष्य में अवधि होगा ऐसा द्रव्य भी नो आगम ज्ञायक शरीर द्रव्य है। इसके तीन भेद हैं, -१. ज्ञशरीर २. भव्य शरीर और ३. तद्व्यतिरिक्त।
106. णिच्छए णिण्णए खिवदि त्ति णिक्खेओ। - षटखण्डागम (धवला), पु. 1, पृ. 10 107. नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्यासः। - तत्त्वार्थ सूत्र 1.5 108. आवश्यकादिशब्दानामर्थो निरूपणीयः, स च निक्षेपपूर्वक एवं स्पष्टतया निरूपिता भवति। अनुयोगद्वारवृत्ति 109. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 581