________________
चिरामा
[252] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन परम्परा रही है। आवश्यकनियुक्ति के अनुसार आर्यरक्षितसूरि ने अनुयोग के समय कालिकश्रुत की व्यवस्था की थी। प्रथम अनुयोग चरणकरनाणुयोग है। उसके लिए नियुक्तिकार ने कालिक श्रुत शब्द का प्रयोग किया है।25
अकलंक ने अंगबाह्य के कालिक और उत्कालिक के अनेक विकल्पों का कथन किया है। उनके अनुसार स्वाध्याय काल में जिसका काल नियत है, वह कालिक है, अनियत काल वाला उत्कालिक है।26 उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि स्वाध्याय काल की मर्यादा के आधार पर यह विभाग किया गया है। कालिक सूत्र के भेद
कालिक सूत्र के अनेक भेद हैं, उनमें से प्रमुख नाम नंदीसूत्र और व्यवहार सूत्र में प्राप्त होते हैं, जो इस प्रकार है - 1. उत्तराध्ययन 2. दशाश्रुतस्कन्ध 3. बृहत्कल्प 4. व्यवहार 5. निशीथ 6. महानिशीथ 7. ऋषिभाषित 8. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति 9. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति 10. चन्द्रप्रज्ञप्ति 11. लघुविमानप्रविभक्ति 12. महाविमानप्रविभक्ति 13. अंगचूलिका 14. वर्गचूलिका 15. व्याख्याचूलिका 16. अरुणोपपात 17. वरुणोपपात 18. गरुड़ोपपात 19. धरणोपपात 20. वैश्रमणोपपात 21. वेलंधरोपपात 22. देवेन्द्रोपपात 23. उत्थानश्रुत 24. समुत्थानश्रुत 25. नागपरिज्ञापनिका 26. निरयावलिकाएँ, 27. कल्पिका, 28. कल्पावतंसिका, 29. पुष्पिता, 30. पुष्पचूलिका तथा 31. वृष्णिदशा।27 व्यवहारसूत्र में नंदीसूत्र में आए हुए आगमों के अतिरिक्त अन्य कालिक आगमों के नाम का भी उल्लेख है, यथा स्वप्नभावना, चारणभावना, तेजनिसर्ग, आशीविषभावना, दृष्टिविषभावना।28 इन पांचों को गिनने पर कालिक सूत्रों की संख्या 36 होती है।
नंदीसूत्र 29 में उपलब्ध कालिक सूत्र के वर्णन में देवर्द्धिगणि सामने और भी कालिक सूत्र रहे हो लेकिन सभी को लिपिबद्ध नहीं किया हो, ऐसा 'एवमाइयाई' (इत्यादि) शब्द से प्रतीत होता है।
आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा सम्पादित नंदी सूत्र में कालिक सूत्र के अन्तर्गत 'कल्पिका' का नाम नहीं है।30 जबकि युवाचार्यमधुकरमुनि के नंदी सूत्र में यह नाम प्राप्त होता है।31 उत्कालिक सूत्र के भेद
उत्कालिक शास्त्र अनेक हैं, लेकिन नंदीसूत्र के अनुसार मुख्य रूप से उसके 29 नाम गिनाये हैं, यथा-1. दशवैकालिक, 2. कल्पाकल्प, 3. लघुकल्प, 4. महाकल्प, 5. औपपातिक, 6. राजप्रश्नीय, 7. जीवाभिगम, 8. प्रज्ञापना, 9. महाप्रज्ञापना, 10. प्रमादाप्रमाद, 11. नन्दी, 12. अनुयोगद्वार, 13. देवेन्द्रस्तव, 14. तंदुलवैचारिक, 15. चन्द्रवेध्यक, 16. सूर्यप्रज्ञप्ति, 17. पौरुषीमण्डल, 18. मण्डप्रवेश, 19. विद्याचरणविनिश्चय, 20. गणिविद्या, 21. ध्यान विभक्ति, 22. मरण विभक्ति, 23. आत्मविशुद्धि, 24. वीतरागश्रुत, 25. संलेखनाश्रुत, 26. विहारकल्प, 27. चरणविधि, 28. आतुरप्रत्याख्यान, 29. महाप्रत्याख्यान इत्यादि ।32
तत्त्वार्थसूत्र में नंदीसूत्र के समान उत्कालिक के नामों का उल्लेख नहीं है। पूज्यपाद ने कालिक उत्कालिक भेद का नामनिर्देश नहीं किया है। लेकिन दोनों भेदों के एक-एक ग्रंथ का उल्लेख अवश्य किया है, यथा कालिक - उत्तराध्ययन, उत्कालिक - दशवैकालिक 33 जबकि अकलंक ने आवश्यक325. आवश्यक नियुक्ति गाथा 776-777 326. स्वाध्यायकाले नियतकालं कालिकम्। अनियतकालमुत्कालिकम्। - तत्त्वार्थवार्तिक 1.10.14 327. नंदीसूत्र पृ. 163
328. त्रीणिछेदसूत्राणि (व्यवहारसूत्र) उ. 10 पृ. 452-453 329. नंदीसूत्र, पृ. 163
330. आ० महाप्रज्ञ, नंदी, पृ. 136 331. नंदीसूत्र, पृ. 163
332. नंदीसूत्र पृ. 161-162 333. सर्वार्थसिद्धि 1.20