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विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहवृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन
5-6. सम्यक् श्रुत-मिथ्या श्रुत
ज्ञाता एवं उपदेष्टा के सम्यक्त्वी होने पर उनका श्रुत सम्यक् श्रुत होता है तथा उनके मिथ्यात्वी होने पर वह श्रुत मिथ्याश्रुत कहलाता है।
नंदीसूत्र के अनुसार - 1. केवलज्ञान, केवलदर्शन के धारक, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, भूत, भविष्य एवं वर्तमान के ज्ञाता अरिहंत प्रभु से प्रणीत गणिपिटक रूप द्वादशांगी सम्यक्श्रुत है।34 जो देव, गुरु और धर्म का, नवतत्त्व का, षड्द्रव्य का सम्यग् अनेकान्तवाद पूर्वक, पूर्वापर अविरुद्ध यथार्थ सम्यग्ज्ञान है, जो शम संवेगादि को उत्पन्न करने वाला, सम्यक् अहिंसा, सम्यक् तप की प्रेरणा करने वाला, भव-भ्रमण का नाश करने वाला और मोक्ष पहुँचाने वाला है, वह 'सम्यक्श्रुत' है
2. कुत्सित ज्ञानियों एवं मिथ्यादृष्टियों द्वारा अपनी स्वच्छंद-आधारहीन बुद्धि की कल्पना के द्वारा रचे गये शास्त्र मिथ्याश्रुत हैं।35
विशेषावश्यकभाष्य के अनुसार - आचारांगादि अंगप्रविष्ट और आवश्यकादि अनंगप्रविष्ट (अंगबाह्य) रूप श्रुत के स्वामी की अपेक्षा के बिना स्वाभाविक रूप से सम्यक् श्रुत और लौकिक महाभारतादि स्वाभाविक रूप से मिथ्या श्रुत हैं। किन्तु सम्यग्दृष्टि मिथ्याश्रुत को सम्यक् प्रकार से ग्रहण करता है तो वह उसके लिए सम्यक् श्रुत होता है। इसी प्रकार मिथ्यादृष्टि सम्यक् श्रुत को मिथ्या प्रकार से ग्रहण करता है तो वह उसके लिए मिथ्याश्रुत होता है।36 सम्यक् श्रुत के प्रकार
तीर्थंकर के प्रवचनों को सुनकर गणधरों द्वारा ग्रथित बारह अंगों वाला गणिपिटक 'सम्यक्श्रुत' है। वह इस प्रकार से है - 1. आचारांग, 2. सूत्रकृतांग, 3. स्थानांग, 4. समवायांग, 5. व्याख्याप्रज्ञप्ति (उपनाम-भगवती), 6. ज्ञाताधर्मकथा, 7. उपासकदसा, 8. अन्तकृद्दशा, 9. अनुत्तरौपपातिकदशा, 10. प्रश्नव्याकरण, 11. विपाक, 12. दृष्टिवाद 37
प्रश्न - क्या अंगसूत्र ही सम्यक्श्रुत हैं, शेष नहीं?
उत्तर - ये बारह सूत्र, अंग के अन्तर्गत होने से मूलभूत एवं प्रधान हैं, अतः इनका यहाँ उल्लेख किया है। वैसे अंगबाह्य जो आवश्यक आदि आगम हैं, वे भी 'सम्यक्श्रुत' हैं। जिनभद्रगणि आदि आचार्यों ने अंगबाह्य को भी सम्यक् श्रुत स्वीकार किया है 238 मिथ्याश्रुत के प्रकार
नंदीसूत्र में अपेक्षा विशेष से व्यास रचित भारत, वाल्मीकि रचित रामायण, भीमासुर रचित शास्त्र, त्रैराशिक-गोशालक मत के ग्रंथ, चार्वाक मत के ग्रंथ आदि को 'कुप्रावचनिक शास्त्र' या मिथ्याश्रुत कहा हैं।39 सम्यक् श्रुत के रचयिता
छद्मस्थ की अपेक्षा - चौदह पूर्व के ज्ञाता अथवा कम से कम अभिन्न-पूर्ण, दस पूर्व के ज्ञाता की रचना सम्यक् श्रुत में परिणत होती है तथा दस पूर्व से कम ज्ञानियों की रचना सम्यक्श्रुत में परिणत हो भी सकती और नहीं भी 40 234. पारसमुनि, नंदीसूत्र, पृ. 214 235. से किं तं मिच्छासुयं? मिच्छासुयं जं इमं अण्णाणिएहि मिच्छादिट्ठिएहिं सच्छंदबुद्धिमइविगप्पियं। - पारसमुनि, नंदीसूत्र, पृ. 216 236. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 527
237. नंदीसूत्र, पृ. 152 238. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 527, नंदीचूर्णि पृ. 77, हारिभद्रीय पृ. 78, मलयगिरि पृ. 193, जैनतर्कभाषा पृ. 23 239. नंदीसूत्र, पृ. 155 240. इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगं चोद्दसपुब्विस्स सम्मसुयं, अभिण्णदसपुव्विस्स सम्मसुयं, तेण परं भिण्णेसु भयणा। नंदीसूत्र, पृ. 152