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चर्तुथ अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में श्रुतज्ञान
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लब्ध्यक्षर, 5. स्पर्शनेन्द्रिय लब्ध्यक्षर तथा 6. अनिन्द्रिय लब्ध्यक्षर।59 नंदीसूत्र के बाद के व्याख्याकारों ने भी इन भेदों का उल्लेख किया है। विशेषावश्यकभाष्य में इन भेदों का स्पष्ट रूप से उल्लेख प्राप्त नहीं होता है।
विशेषावश्यकभाष्य की गाथा 117 'सोइंदिओवलद्धी होई सुयं सेसयं तु मइनाणं। मोत्तूण दव्वसुयं अक्खरलंभो य सेसेसु।' के अनुसार यह मान सकते हैं कि जिनभद्रगणि ने पूर्व में श्रुत को श्रोत्रेन्द्रियोपलब्धिरूप माना है। नंदी में लब्ध्यक्षर के छह भेदों का उल्लेख है, इससे जिनभद्रगणि श्रोत्रेन्द्रियोपलब्धि में अन्य इन्द्रियजन्य अक्षरलाभ को समाविष्ट करके उक्त भेदों की संगति बैठाते हैं।160 जिनदासगणि ने लब्ध्यक्षर को पंचविध माना है। उन्होंने मनोजन्य अक्षरलाभ को स्वीकार नहीं किया है । नंदी के टीकाकारों ने उक्त भेदों को समझाते हुए बताया है कि श्रोत्रेन्द्रिय से शब्द सुनने पर 'यह शंख का शब्द है' इत्यादि अक्षरमय शब्दार्थपर्यालोचन से जो ज्ञान होता है, वह श्रोत्रेन्द्रियलब्ध्यक्षर है, क्योंकि वह श्रोत्रेन्द्रिय के निमित्त से हुआ है।62 आंख से आम्रफल देखने पर 'आम्रफल' इस प्रकार जो अक्षरानुविद्धज्ञान है, वह शब्दार्थपर्यालोचनात्मक ज्ञान होता है, वह चक्षुइन्द्रिय लब्ध्यक्षर है, इत्यादि।163
अकलंक के अनुसार ईहा आदि में शब्दोल्लेख होता है, तो वह श्रुतज्ञान नहीं है। क्योंकि अवग्रह आदि में संकेत के समय में श्रुतानुसारित्व होता है, लेकिन व्यवहार काल श्रुतानुसारित्व नहीं होता है। अभ्यास के कारण श्रुत के अनुसरण के बिना भी ज्ञप्ति होती है। इससे श्रुत का अनुसरण किये बिना इन्द्रियमनोनिमित्त ज्ञप्ति मति है, जबकि श्रुतानुसारी ज्ञप्ति श्रुत है। शब्दानुयोजना पूर्व की ज्ञप्ति मति है, जबकि शब्दानुयोजनायुक्त ज्ञप्ति श्रुत है।64 2. अनक्षर श्रुत
श्रुतज्ञान के प्रथम भेद अक्षर श्रुत के विपरीत द्वितीय अनक्षरश्रुत का स्वरूप निम्न प्रकार से है। भाषा अक्षरात्मक और अनक्षरात्मक दोनों प्रकार की होती है। जहां जीव का बोलने का प्रयत्न हो
और भाषा वर्णात्मक न हो , वह नो अक्षरात्मक बन जाती है। उच्छ्वास-नि:श्वास बोलने रूप प्रयत्न से उत्पन्न नहीं है। अतः भाषात्मक नहीं है। फिर भी श्रुतज्ञान का कारण है। इसलिए इन्हें अनक्षर श्रुत माना गया है अर्थात् जो ध्वनिमय अभिप्राय से युक्त हो और जिसे अक्षर रूप में लिपिबद्ध नहीं किया जा सकता है, वह अनक्षर श्रुत है। ___ नंदीसूत्र के अनुसार जो 'अ' 'क' आदि वर्ण रहित श्रुत है, उसे 'अनक्षर श्रुत' कहते हैं। अनक्षरश्रुत के अनेक भेद हैं।.....1. श्वास लेना, 2. श्वास छोड़ना, 3. थूकना 4. खांसना, 5. छींकना, 6. 'गूं-गू करना 7. अधोवायु करना, 8. सुड़सुड़ाना।65 इसी प्रकार सभी संकेतादि भी अनक्षर श्रुत रूप ही हैं। यहाँ शाब्दिक अर्थ ही दिया है। 'सुणिति इति सुयं' - जो सुना जाता है, वह श्रुत है। इसलिए यहाँ छींकादि के उदाहरण दिये गये हैं। किन्तु पांचों इन्द्रियों से भी किये गये संकेत द्रव्यश्रुत रूप ही हैं।
159. नंदीसूत्र, पृ. 146
160. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 124 161. तंच पंचविहं सोइंदियादि। -नंदीचूर्णि, पृ. 71 162. नंदीचूर्णि पृ. 71, हारिभद्रीय पृ. 72, मलयगिरि पृ. 188 163. मलयगिरि, नंदीवृत्ति, पृ. 188-189
164. तत्त्वार्थश्वोलवार्तिक 1.20. 123 से 126 165. अणक्खरसुयं अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहा- ऊससियं णीससियं, णिच्छूढं खासियं च छीयं च। णिस्सिंघियमणुसारं, अणक्खरं
छेलियाईयं। - नंदीसूत्र, पृ. 147