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________________ [214] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन 6. श्वेताम्बर साहित्य में कर्मजा बुद्धि की प्राप्ति में आचार्य के उपेदश के तत्त्व को स्वीकार किया गया है, जबकि धवलाटीकार ने कर्मजा बुद्धि की प्राप्ति में आचार्य के उपेदश के तत्त्व को स्वीकार नहीं किया गया है। ____7. श्वेताम्बर साहित्य में औत्पतिकी, वैनयिकी और कर्मजा बुद्धि का अंतर्भाव पारिणामिक बुद्धि में नहीं माना गया है, जबकि धवलाटीका के अनुसार जातिविशेष से उत्पन्न हुई बुद्धि पारिणामिक है। इसलिए औत्पतिकी, वैनयिकी और कर्मजा से भिन्न बुद्धि का अंतर्भाव पारिणामिक प्रज्ञा में किया गया है। 8. श्वेताम्बर ग्रंथों में औत्पात्तिकी आदि चार बुद्धियों का सम्बन्ध मतिज्ञान से माना गया है, दिगम्बर ग्रथों में औत्पातिकी आदि चार बुद्धियों का सम्बन्ध श्रुतज्ञान से किया गया है। 9. नंदी टीका में मेधा का अर्थ प्रथम विशेष सामान्य अर्थावग्रह के बाद प्राप्त 'विशेष सामान्य अर्थावग्रह' किया है। धवलाटीका में मेधा का अर्थ अर्थज्ञान के हेतु के रूप में स्वीकृत किया है। 10. आवश्यकनियुक्ति आदि में अपोह का अर्थ अवाय परक किया है, जबकि षट्खण्डागम और धवलाटीका में इसका अर्थ ईहा परक किया है। 11. श्वेताम्बर परम्परा में स्मृति को मतिज्ञान रूप में स्वीकार किया है, जबकि दिगम्बर परम्परा में स्मृति को श्रुतज्ञान के रूप में स्वीकार किया गया है। ____ 12. यशोविजय वासना को औपचारिक रूप से ज्ञान रूप मानते हैं, जबकि अकलंक और हेमचन्द्र वासना को ज्ञान रूप मानते हैं। 13. श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार संस्कार कर्म-क्षयोपशमरूप होने से आत्मा की शक्ति विशेष मात्र है, ज्ञान रूप नहीं है, जबकि दिगम्बर परम्परा में वासना (संस्कार) को ही धारणा के रूप में स्वीकार किया गया है। 14. जिनभद्रगणि ने संशयादि को ज्ञान रूप स्वीकार किया है, जबकि अकलंक ने संशयादि को ज्ञान रूप स्वीकार नहीं किया है।
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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