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तृतीय अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में मतिज्ञान
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जातिस्मरणज्ञान भी मतिज्ञान का ही एक रूप
जातिस्मरण ज्ञान का अर्थ है-'पूर्व भव में जो शब्द आदि रूपी-अरूपी पदार्थों का ज्ञान किया था, उनका वर्तमान भव में स्मरण में आना।' लेकिन इसमें पूर्वभवों की सब बातों का स्मरण होना आवश्यक नहीं है। जो गहराई से स्मृति में अंकित होती है, वही बातें याद आती हैं। जैसे हम अनेक स्थानों पर घूमने जाते हैं, सब स्थानों की सब बातें याद नहीं रहती हैं। किन्तु मुख्य-मुख्य बातें याद रहती हैं। इस जन्म की स्मृति आना स्मृति मात्र है जातिस्मरण नहीं है, क्योंकि वह ज्ञान अन्य जन्म का नहीं है। आगमकारों ने जातिस्मरण का समावेश धारणा के तीसरे भेद-स्मृति के अन्तर्गत किया है।
पूर्व भव स्मरण रूप जातिस्मरण ज्ञान, केवल पर्याप्त संज्ञी जीवों को ही होता है। जातिस्मरण से पिछले संज्ञी भव ही स्मरण में आते हैं। यदि पिछले लगातार सैकड़ों भव संज्ञी के किये हों और क्षयोपशम तीव्र हो तो जाति स्मरण से वे सैकड़ों भव भी स्मरण में आ सकते हैं। 'वे भव 900 तक हो सकते हैं' ऐसी एक धारणा है, अन्य धारणा से 900 से ऊपर भी संभव है।
जैसे-जैसे जातिस्मरण से पूर्वभव को देखेगा वैसे-वैसे स्मृति में मन्दता आने के कारण जातिस्मरण का विषय कम होता जायेगा। जातिस्मरणज्ञान परभव में साथ नहीं जाता है, क्योंकि जातिस्मरण में स्मृति का विषय कम होने से भवान्तर में जाते हुए जीव में स्मृतिभंग हो जाने से साथ नहीं चलता है। किन्तु पुनः निमत्ति मिलने से जातिस्मरण हो सकता है। कितने भवों तक लगातार हो सकता है, इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। लेकिन ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र के प्रथम अध्ययन में दो भवों में होने का उल्लेख है।
आचारांगसूत्र की टीका में जातिस्मरण ज्ञान को प्रत्यक्ष माना है, जबकि नंदीसूत्र की टीका में इसको परोक्ष ज्ञान कहा है। नन्दीसूत्र में मति के पर्यायवाची नामों में ईहा, अपोह, मार्गणा, स्मृति आदि के नाम आये हैं और ईहा, अपोह, मार्गणा से पूर्व अनुभूत भवों का स्मरण होना ही जातिस्मरण है। अतः स्मरण होना मतिज्ञान है। इसलिए जातिस्मरण को मति के अन्दर अर्थात् परोक्षज्ञान में लिया है। जातिस्मरण से पूर्वभव की स्मृति होकर वैराग्यादि बढ़ाने में साधक होने से उसे भी प्रत्यक्ष के समान कह दिया गया है। जैसे कि नन्दीसूत्र में मतिज्ञान को इन्द्रिय प्रत्यक्ष के रूप में बताया ही है। अत: सांव्यावहारिक प्रत्यक्ष होने से जातिस्मरण को आचारांग की टीका में प्रत्यक्ष कहा गया है।
षटखण्डागम, तत्त्वार्थभाष्य और नंदीसूत्र में अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा के पर्यायवाची नामों में जो भिन्नता है, उसको चार्ट द्वारा दर्शाया गया है - अवग्रह नंदी सूत्र अवग्रहण उपाधारण श्रवण अवलंबन मेधा षट्खण्डागम अवग्रह अवदान(अवधान) सान अवलम्बता मेधा तत्त्वार्थ भाष्य अवग्रह ग्रह
ग्रहण आलोचन अवधारण ईहा नंदी सूत्र आभोग मार्गणा गवेषणा चिंता विमर्श षट्खण्डागम ईहा ऊहा
अपोहा मार्गणा गवेषणा मीमांसा तत्त्वार्थ भाष्य ईहा
विचारणा जिज्ञासा अवाय नंदी सूत्र आवर्तन प्रत्यावर्तन अपाय बुद्धि विज्ञान षट्खण्डागम अवाय व्यवसाय बुद्धि विज्ञप्ति आमुंडा प्रत्यामुंडा तत्त्वार्थ भाष्य अपाय अपगम
अपनोद अपव्याध अपेत अपगत धारणा नंदी सूत्र धरणा धारणा स्थापना प्रतिष्ठा कोष्ठ षट्खण्डागम धारणी धारणा स्थापना कोष्ठा प्रतिष्ठा तत्त्वार्थ भाष्य प्रतिपत्ति अवधारणा अवस्थान निश्चय अवगम अवबोध
ऊहा
तर्क
परीक्षा