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________________ (४१) शनिश्चरे सदा दुःस्थो बुधे जातो 'महाजडः। मातृभिर्मुरुभिः साद हृदये कुटिलः कटुः ॥२०४॥ उत्तमतिथिसंयोगे रविवारोदये पुनः । खीलग्ने स्वीगृहे* चैव नारी पुण्यक्ती मता ॥२०५।। उत्तमतिथिसंयोगे रविवारोदये पुनः । कापि सुखी क्वचिदुःखी' जायते कटुभाषकः ।।२०६॥ महाभोगी महाचक्षः स्त्रीषु लोलाङ्गनाप्रियः । सुभगः पात्रभूतश्च शुक्रे शुक्राधिको मतः ॥२०७॥ महामोगी महात्यागी गुरुभक्तो गुरुप्रियः निजक्षेत्र गुरौ जातः पात्रभूतः पुमान् पुनः ॥२०८|| अश्विन्याधुत्तमे स्थाने जातो भवति पुण्यवान् । मध्येपु" कृत्तिकायेषु भरण्यादिषु दुर्गतः ॥२०९॥ शनिश्चर वार में उत्पन्न बालक सर्वदा दुःखावस्था में रहता है। बुध में महाजड़ और अपने माता, गुरुओं के साथ कौटिल्यपूर्वक व्यवहार करने वाला होता है ।।२०४|| उत्तम तिथि के साथ रविवार का संयोग हो और कन्या लग्न तथा कन्या राशि रहे तो पुण्यवती कन्या का जन्म कहना चाहिये ।।२०।। रविवार में उत्तम तिथि के संयोग रहने पर भी उत्पन्न शिशु कभी सखी कभी दुखी कभी कटुभाषी होता है ।।२०६॥ शुक्रवार में उत्तम तिथि के संयोग रहने पर महाभोगी, दिव्यचा, सन्दर स्त्रियों का प्रेमी तथा स्वयं भी सुन्दर और पुष्ट वीर्य वाला योग्य होता है ॥२०७॥ बृहस्पति वार में शभतिथियों के संयोग रहने पर बालक महाभोगी, त्यागशील, गुरुभक्त, गुरुप्रिय तथा सुपात्र होता है ।।२०। अश्विनी आदि उत्तम नक्षत्रों में उत्पन्न बालक पुण्यवान होता है। कृत्तिकादि उक्त मध्यम नक्षत्रों में मध्यम और भरणी आदि अधम नक्षत्रों में अधम होता है ॥२०६॥ ___ 1. जडः पुमान् for महाजड: A. AI. 2. मातृभिः पितृमिः for मातृमिगुरुभिः A, A1. 3. सनुः for पुन: A. 4. ग्रहै for गृहे A. 5. कचिदु :खी सुखी कापि A. A1. 6, मध्यश्च for मध्येषु Amb.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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