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(४२) पृच्छायां गौरगात्राणां यत्र मासे' गुरोर्भवेत् । उदयस्तत्र मासे स्यादुदयोऽस्तेऽस्तमादिशेत् ॥२१०॥ पृच्छायां श्यामगात्राणां यत्र मासे कवर्भवेत् । उदयस्तत्र मासे स्यादुदयोऽस्तेऽस्तमादिशेत् ॥२११॥ घातवणितगात्राणां यत्र मासे कुजोदयः । उदयस्तत्र मासे स्यात् पुंसामस्तेऽस्तमादिशेत् ॥२१२॥ पच्छायां भिन्नगात्राणां यत्र मासे बुधोदयः । उदयस्तत्र मासे स्यात् पुंसामस्तेऽस्तमादिशेत् ॥२१३॥ उदयात्पृष्ठलग्ने चेत् पृच्छायां पृच्छकस्य च । न स्यात् पृच्छार्थसम्पत्तिस्ततो लग्नान्तरे पुनः ॥२१४॥
प्रभ करते समय यदि प्रश्न करने वाला गौर वर्ण का रहे तो गुरु का उदय जब हो उस समय प्रश्न कर्ता का भाग्योदय और गुरु के अस्त समय पर अस्त कहना चाहिये ।।२१०॥
यदि प्रश्नकर्ता श्यामवर्ण का हो तो शुक्रोदय के महीने उसका उदय और शुक्रास्त के महीने उसका अस्त कहना चाहिये ।।२१।।
यदि प्रश्रकर्ता घात तथा व्रणों से युक्त शरीर वाला हो तो मङ्गलोदय के समय उसका उदय और मङ्गलास्त के समय उसका अस्त कहना चाहिये ॥२१२॥
यदि प्रश्नकर्ता छिन्न भिन्न शरीर वाला हो तो बुध के जयकाल में उसका उदय और अस्त काल मे अस्त कहना चाहिये ।।२१३।।
प्रभकर्ताओं के प्रश्न के समय यदि पृष्ठोदय लग्न हो तो अभीष्ट सिद्धि नहीं होती। अन्य लग्नों में होती हैं ॥२१४॥
1, मासेन for मासे; the addition of न is redundant 2. कवि for कवे Amb. 3. For मस्तेऽस्तमादिशेत् A. reads मस्ते च दुर्गति: 4. A, A1 add here : आतंक भग्नगात्राणां यत्र मासे शनेर्भवेत् । उदयस्तत्र मासे स्यात्पुसामस्ते च पूर्ववत । Bh. reads मातंकलगागात्राणां यत्र मासे शनिर्भवेत् । etc. 5. पृष्टलग्नं for पृष्ठलाने A. Amb, चतुतिः Bh. षष्ठे लग्ने for पृष्ठलाने Bh.