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रिपौ चतुष्पदं नीचं मातुलः क्रूरकर्म च । दासी दासो रिपुर्व्याधिः परतोऽहङ्कृतिर्वणम् ॥१८३॥ अस्तात्साध्यव्यवहारः कलहश्च गमागमौ । चौरी विजयः स्वस्थत्वं हर्षो झगटकः स्मृतः ॥ १८४॥ मृत्योर्नद्युतारगणो यथाधिदुर्गमापदः ।
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योनिविस्मृतिनिष्पत्तिः " संवादो भेदपत्तयः || १८५ ॥ शत्रुद्रव्यं परीवारो मृतार्थश्विरवस्तुनः " ।
निधनं पोतजार्थातिराकुलत्वं च चिन्तयेत् ॥ १८६॥ धर्माद्वापी कूपसरः प्रपामठ' सुरालयाः ।
दीक्षा यात्रानव्यविद्या पुण्यं भाग्यं गुरुस्तपः ॥ १८७॥
षष्ठ स्थान से नीच पशु, मामा, क्रूरकर्म, दासी, दास, शत्रु, व्याधि, दूसरे से अहंकार तथा क्षति आदि बातों का विश्वार करना चाहिये ॥ २८३ ॥
सप्तम स्थान से योग्य व्यापार, आना, जाना, व्यय, चोर, विजय, स्वस्थता, हर्ष, रोग, आदि का विचार करना चाहिये ।। १८४ ॥
अष्टम स्थान से नदी को पार करना, श्रधि, मार्ग के संकट, मार्गभ्रम, मार्गापत्ति, योनि, विस्मृति, संवाद, भेद, शत्रु, द्रव्य, परिवार, चिर नष्ट धन तथा वस्तु, मरण, सामुद्रिक व्यवसाय से अर्थलाभ तथा राजकुल के सम्बन्ध आदि का विचार करना चाहिये ।। १८५-८६ ।।
धर्मस्थान से बावड़ी, कूप, तालाब, प्याऊ मन्दिर तथा मठ, दीक्षा, यात्रा, नवीन प्रकार की विद्या, पुण्य, भाग्य गुरु और तपश्चर्या आदि के विषयों का विचार करना चाहिये || १८७॥
1 रुक्ठकः for झगटक: Amb. 2. for मृत्योर्नद्युत्तारगणोमूल्योंनितारो A. नद्यो मृत्युतारगण पथ्याधि० 3. नष्टाप्ति: for निष्पत्ति: A, Bh. 4. संवादौ for संवादो A. 5. मृतार्था भकटकः स्मृता Bh. 6. निधानं for निधनं A. 7. ०राजकुलत्वं for राकुलत्वं A. 8. पाठ for मठ A.